#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*दादू शब्द बाण गुरु साध के, दूर दिसन्तरि जाइ ।*
*जिहि लागे सो ऊबरे, सूते लिये जगाइ ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
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**श्री रज्जबवाणी गुरु संयोग वियोग माहात्म्य का अंग ९**
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सद्गुरु सिंह समान है, शब्द डंक नख ठौर ।
जीवित जाय गह जोर वर, उतरे बल कुछ और ॥५॥
सद्गुरु सिंह के समान हैं, जैसे सिंह के नख जीवित अर्थात पंजे के लगे हैं तब तो उनमें श्रेष्ठ बल होता है और पंजे से उतरने के पीछे उनका बल अन्यावस्था को प्राप्त होता है अर्थात फिर उनसे कोई भी नहीं डरता, प्रत्युत डरपोक बालक के गले में बाँधे जाते हैं । वैसे ही सद्गुरु शब्द गुरु मुख द्वारा तो महान् कार्य करता है और गुरु मुख से हट जाने पर उसमें पूर्ववत् शक्ति नहीं रहती ।
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वाराह१ वारण२ वक्त्र३ बल, देखहु दुहुं के दंत ।
तैसे गुरु मुख शब्द सयाणा४, मनहु मनावै मंत५ ॥६॥
देखो, शूकर१ और हाथी२ इन दोनों के मुख३ में दाँतो का ही बल है । हे सुजान४ वैसे ही गुरु के मुख में शब्द का बल है, वे शब्द-बल से ही साधकों के मनको अपना सिद्धान्त मनवाते५ हैं ।
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रज्जब जहिं पारे पैदा हुये, पारवती मधि पूत ।
सो पारा अजहूं घणा, पै१ पी न होत सुत सूत२ ॥७॥
जिस पारे से पार्वती में पुत्र उत्पन्न हुये थे, वही पारा अब भी बहुत है किंतु१ इस पारे२ के पीने पर पुत्र नहीं होता । पारा शंकर जी का वीर्य माना जाता है, वह वीर्य रूप से शंकरजी में था तभी पुत्र हुये थे । वैसे ही सद्गुरु के जीवन काल में उनके मुख से शब्द सुनने से बहुत से शिष्यों का उद्धार होता है, पीछे वे ही शब्द ग्रंथाकार में रहते हैं किन्तु गुरु मुख बिना मुक्त नहीं करते, उन्हें कोई सद्गुरु सुनाता है तभी साधकों को यथार्थ बोध होता है ।
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निनाणवें कोटि१ नराधिपति२, निपजे४ गोरख ज्ञान ।
अब रज्जब एकहुँ नहीं, शब्द सत्ता घट मान ॥८॥
योगिराज गोरक्षनाथ जी के मुख से सुने शब्दों के ज्ञान द्वारा ९९ प्रकार१ के राजा२ साधक होकर४ मुक्त हुये थे । उन्हीं शब्दों का पाठ अब भी किया जाता है किंतु पढ़ने वालों में एक भी मुक्त नहीं होता, तब निश्चयपूर्वक मानना होगा कि शब्द की शक्ति रूप सत्ता कम हो गई ।
(क्रमशः)

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