मंगलवार, 31 अक्टूबर 2017

= आत्मा अचलाष्टक(ग्रन्थ २१-४) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= आत्मा अचलाष्टक(ग्रन्थ २१) =*
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*षष्ठ उदाहरण -*
*बादल दौरे जात है, दौरत दिसै चन्द ।*
*देह संग तैं आतमा, चलत कहै मतिमन्द ॥*
*चलत कहै मतिमन्द, आतमा अचल सदा हीं ।*
*हलै चलै यह देह, थापी ले१आतम मांहीं ।*
*सुन्दर चच्ञल बुद्धि, संमझि तातैं नहिं बौरे२ ।*
*दौरत दीसै चन्द, जात है बादल दौरे ॥४॥*
(१.थापिले=स्थापित वा आरोपित कर ले ।)
{२. बौरे = हे बोर, बावले ! यदि ‘बोरे’ पाठ रक्खे तो अन्य(और) वा भिन्न ऐसा अर्थ होगा । बुद्धि की अस्थिरता व अज्ञान के कारण वास्तविक पदार्थ का ज्ञान नहीं होता है, वरना आत्मा निजस्वरूप से भीं(जड़) नहीं है ।}
(छठा उदारहण --) यद्यपि आकाश में वायु के वेग से बादल चलते हैं परन्तु उनके चलने से चन्द्रमा के चलने का भ्रम होता है, इसी प्रकार अज्ञानी लोग अस्थिर देह के संग के कारण(स्थिर) आत्मा का इस संसार में आना-जाना समझते हैं । यद्यपि अज्ञानी लोग आत्मा में चलन क्रिया मानते हैं परन्तु वास्तुस्थिति यह है कि आत्मा सदैव नित्य है, स्थिर है । वस्तुतः देह की गमना-गमन किया का आरोप अज्ञानी लोग स्थिर आत्मा में कर लेते हैं । ये विवेक-भ्रष्ट चच्ञल बुद्धि लोग स्वयं सच्चाई(वास्तविक तथ्य) नहीं समझ पाते और वे वायुवेग से बादलों को चलता हुआ देखकर ‘चन्द्रमा चल रहा है’ - यही मिथ्या भ्रम पाले रहते हैं ॥४॥
(क्रमशः)

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