सोमवार, 9 अक्टूबर 2017

= गुरुदेवमहिमा-स्तोत्राष्टक(ग्रन्थ १८- दो.१/२) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= दोहा =*
*परमेश्वर महिं गुरु बसै, परमेश्वर गुरु माँहिं ।*
*सुन्दर दोऊ परसपर, भिन्न भाव सो नाँहिं ॥१॥*
परमेश्वर में गुरु का वास है, और गुरु में परमेश्वर का वास है - यौं, ये दोनों आपस में एक दूसरे से अभिन्न हैं, इनमें कोई भेद नहीं किया जा सकता है ॥१॥
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*परमेश्वर व्यापक सकल, घट धारें गुरुदेव ।*
*घट कौं घट उपदेश वे, सुंदर पावै भेव ॥२॥*
*॥ समाप्तोSयं गुरुदेवमहिमा स्तोत्राष्टक -ग्रन्थः ॥*
हाँ, इनमें विशेषता यह है कि परमेश्वर सर्वसंसार में व्याप्त है और गुरुदेव ने यह पाच्ञभौतिक शरीर धारण कर रखा है । एक शुद्धचित्त दूसरे शुद्धचित्त को उपदेश दे - इसका रहस्य कोई पहुँचा हुआ ज्ञानी ही समझ सकता है ॥२॥
*गुरुदेव-महिमा की स्तुति अष्टक समाप्त*
(क्रमशः)

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