बुधवार, 18 अक्टूबर 2017

= नाम-अष्टक(ग्रन्थ २०-१) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= नाम-अष्टक(ग्रन्थ २०) =*
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मोहिनी*
*आदि तूं अन्त तूं मध्य तूं व्योमवत् ।*
*वायु तूं तेज तूं नीर तूं भूमीतत् ॥*
*पच्ञ हू तत्व तूं देह तैं ही करे ।*
*हे हरे हे हरे हे हरे हे हरे ॥१॥*
हे हरे !(परब्रह्म, परमात्मन् !) आकाश की तरह आपका भी आदि(प्रारम्भ) मध्य और अन्त नहीं जाना जा सकता । अथवा इस सृष्टि के आदि मध्य एवं अन्त भाग में आकाश की तरह आप ही विराजमान हैं(अर्थात् आकाश की तरह इस सृष्टि में आप सर्वत्र व्याप्त हैं)
इस सृष्टि में दिखायी पड़ने वाले वायु, तेज, जल, भूमि एवं आकाश तत्व के रूप में आप ही हैं । इन पाँचो तत्वों के सहारे समग्र प्राणियों का शरीर आप ही रण करते हैं(अर्थात् समग्र प्राणियों के शरीर में उक्त पाँचो तत्त्वों के रूप में आप ही विराजमान है) ॥१॥
{मोहिनी* यह भी स्त्रग्विणी छन्द है । ऊपर रामाष्टक(पृ० ३०) पर दी गयी टिप्पणी देखें ।}
(क्रमशः)

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