बुधवार, 4 अक्टूबर 2017

= गुरुदेवमहिमा- स्तोत्राष्टक(ग्रन्थ १८- दो.१/२ =)

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*अथ गुरुदेव महिमा- स्तोत्राष्टक१ (ग्रन्थ १८)*
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(१. इस गुरुदेव-महिमास्तोत्र में कवि ने गुरु को ईश्वर समान ही नहीं, उससे भी बढ़ कर कहा है -
‘गुरु गोविन्द दोनूँ खड़े, किस के लागों पाय ।
बलिहारी गुरुदेव की, सतगुरु दिया मिलाय’ ॥
इत्यादि कथन से साधुओं में गुरु की महिमा बहुत भारी है । यही ज्ञान की प्राप्ति में श्रद्धा और विश्वास द्वारा मुख्य हेतु है ।)
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*= दोहा =*
*परमेश्वर अरु परम गुरु, दोऊ एक समान ।*
*सुंदर कहत विशेष यह, गुरु तें पावै ज्ञान ॥१॥*
*दादू सद्गुरु के चरण, वंदत सुन्दरदास ।*
*तिनि की महिमा कहत हौं, जिनि तें ज्ञान प्रकाश ॥२॥*
अद्यपि मेरे लिये परमेश्वर और गुरु - ये दोनों ही समानता श्रद्धा के पात्र हैं तो भी गुरुदेव में यह विशेषता है कि उसके दिये ज्ञानोपदेश के सहारे जिज्ञासु उस परमेश्वर(ब्रह्म) तक पहुँच पाता है । अतः मैं(श्रीसुन्दरदास जी) अपने सद्गुरु के चरणकमलों में दण्डवत्-प्रणाम(सत्यराम) करते हुए इस अष्टक में गुरुदेव की महिमा का वर्णन करूँगा, जिनके ज्ञानोपदेश से मुझे ब्रह्मसाक्षात्कार हुआ है ॥१-२॥
(क्रमशः)

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