卐 सत्यराम सा 卐
*मुझ ही मैं मेरा धणी, पड़दा खोलि दिखाइ ।*
*आत्म सौं परमात्मा, प्रकट आण मिलाइ ॥*
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साभार ~ Nandan Singh
चाह से शून्य अवस्था है मोक्ष ~
मैंने सुना है, एक मछली बचपन से ही सुनती रही थी सागर की, महासागर की बातें। शास्त्रों में भी मछलियों के महासागर की बातें लिखी हैं। बड़े ज्ञानी थे जो मछलियों में, वे भी महासागर की बातें करते थे। वह मछली बड़ी होने लगी, बड़ी चिंता और विचार में पड़ने लगी कि महासागर है कहां? अब जब मछली सागर में ही पैदा हुई हो तो सागर का पता नहीं चल सकता। वह पूछने लगी कि यह महासागर कहां है? लोगों ने कहा, हमने सुनी हैं ज्ञानियों से बातें, सुनी है वार्ता, देखा तो किसी ने भी नहीं।
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कुछ धन्यभागी मछलियां, कोई बुद्ध - महावीर, कोई कृष्ण - राम जान लेते होंगे; बाकी साधारण मछलियां, हम तो सिर्फ सुन कर मानते हैं कि है महासागर कहीं। वह बड़ी चिंता में रहने लगी। उसका जीवन बड़ा विक्षुब्ध हो गया। वह बड़ी विचारशील मछली थी। वह भूखी - प्यासी भी पड़ी रहती और सोचती रहती कि कैसे महासागर पहुंचे, वह अद्वितीय घटना कैसे घटेगी? महासागर का लोभ उसके मन में समाने लगा। वह सूखने लगी, वह दुर्बल होने लगी। फिर कोई एक अतिथि मछली पड़ोस की नदी से आई थी। उसने उसकी यह हालत देखी। उसने कहा, पागल ! जिसे तू खोजती है, वह चारों तरफ मौजूद है, हम उसी के भीतर हैं।
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महासागर है ही। महासागर के बिना हम हो ही नहीं सकते। जैसा उस मछली को बोध दिया गया, अष्टावक्र जैसे सदगुरु हमें भी यही कह रहे हैं कि हम मोक्ष में हैं ही, परमात्मा हमें चारों तरफ से घेरे हुए है! उसी में हमारा जन्म है, उसी में जीवन है, उसी में हमारा विसर्जन है। लेकिन इतना निकट है परमात्मा, इसलिए दिखाई नहीं पड़ता। दूर होता तो हम देख लेते। आंखें हमारी दूर को देखने में समर्थ हैं। जो निकट है, वही चूक जाता है। जो बहुत पास है, वह भूल जाता है। और परमात्मा से ज्यादा निकट कोई भी नहीं।
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अष्टावक्र की उदघोषणा यही है कि तुम धर्म की चिंता में मत पड़ना। परमात्मा को पाने के लिए कुछ भी करना जरूरी नहीं है; वह मिला ही हुआ है। मोक्ष कहीं भविष्य में नहीं है - मोक्ष अभी और यहीं है। मोक्ष, तुम्हारी चाह से शून्य अवस्था का नाम है।
~ ओशो ~

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