#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*भेष का अँग १४*
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दादू भेष बहुत सँसार में, हरिजन विरला कोइ ।
हरिजन राता राम सौं, दादू एकै होइ ॥१३॥
सँसार में भेषधारी बहुत हैं किन्तु भगवान् का भक्त कोई विरला ही होता है । भगवान् के भक्त तो भेष पक्ष को छोड़कर, सब एक मत हो भगवद् - भजन में ही रत रहते हैं वो भक्त भगवद् - भजन में ही रत हो भगवान् में मिल कर एक हो जाते हैं ।
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हीरे रीझे जौहरी, खल रीझे सँसार ।
स्वाँगि साधु बहु अंतरा, दादू सत्य विचार ॥१४॥
जिज्ञासु रूप जौहरी तो सच्चे सँत - हीरे से ही प्रसन्न होते हैं और सँसारी जन तो पशु के समान हैं । जैसे पशु ते रहित खल से ही प्रसन्न हो जाता है, वैसे ही सँसारी ऊपर के भेष से ही प्रसन्न हो जाते हैं किन्तु भेषधारी और सच्चे सँत में बहुत अन्तर रहता है । अत: सत्यासत्य का विचार करके सच्चे सँतों का ही आदर करो ।
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स्वाँगि साधु बहु अंतरा, जेता धरणि आकाश ।
साधू राता राम सौं, स्वाँगि जगत की आश ॥१५॥
जितना पृथ्वी और आकाश में अन्तर है, उतना ही अत्यधिक अन्तर भेषधारी और सच्चे सँत में रहता है । पृथ्वी में जैसे रूप, रसादि रहते हैं वैसे ही भेषधारी में विषय - विकार और सँसारी जनों की आशा रहती है । आकाश में एक शब्द ही रहता है, वैसे ही सच्चे सँत में राम की अनन्य भक्ति ही रहती है ।
(क्रमशः)

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