🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= आत्मा अचलाष्टक(ग्रन्थ २१) =*
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{महाकवि ने इस अष्टक काव्य में भाषा रस घोलते हुए जनसामान्य में साधारणतः बोले जाने वाले, जैसे -‘चलता है’, ‘रास्ता चला गया’, ‘दीपक जलता है’, ‘चन्द्र-सूर्य चलते हैं’, ‘गंगा बहती है’, ‘कोल्हू चलता है’, ‘बाजार चलती है’, आदि कुछ भ्रमात्मक वाक्यों का उदाहरण देकर और उन्हें अध्यात्म पक्ष(देह और आत्मा- में घटाकर बहुत ही रोचक ढंग से परिहास करते हुए उपदेश किया है ।}
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*कुण्डलिया^*
*पांनी चळस सदा चलै,*
*चलै लाव अरु बैल ।*
*खां भी१ चलतौ देखिये,*
*कूप चलै नहिं गैल ॥*
*कूप चलै नहिं गैल,*
*कहै सब कूवो चालै ।*
*ज्यौं फिरतो नर कहै,*
*फिरै आकाश पतालै ॥*
*सुन्दर आतम अचल,*
*देह चालै नहिं छांनीं ।*
*कूप ठौर कौ ठौर,*
*चालत है चळस रु पांनीं ॥१॥*
(^. श्री सुन्दरदासजी की ये कुण्डलियाँ ‘गिरिधर कविराय’ की कुण्डलियाओं और ‘एन साहब’ की कुण्डलिया तथा सतसाईं की कुण्डलिया ‘अम्बिकादत्त’ की एवं अन्य कुण्डलियाओं से किसी प्रकार भी कम नहीं, अपितु अर्थ, अद्भुतता और चमत्कार में कुछ बढ़ कर ही प्रतीत होती हैं ।)
(१. खां भी = कहीं भी(राजस्थानी भाषा)
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*अस्थिरता की भ्रांति का प्रथम उदाहरण*
महाकवि कहते हैं - जब हम व्यवहार में यह बोलते हैं कि ‘कुआ चलता है’ तो सरासर गलत बोलते हैं; क्योंकि हम तो यही देखते हैं कि कूअे पर सदा पानी भरा चड़स(चाम का बना जलपात्र, जो कि खेतों में कुए से पानी पहूँचाने में काम आता है) लाब(मोटी रस्सी) और बैलों के सहारे से चलता(कुए के ऊपर से नीचे या नीचे से ऊपर आता-जाता) रहता है । कुआ इनके साथ साथ नहीं चलता(वह तो अपनी जगह स्थिर है), फिर भी लोग भ्रम-वश इस जलाहरण क्रिया को ‘कुआ चलता है’ इस भ्रमात्मक वाक्य से प्रकट करते हैं ।
जैसे जमीन पर चलने वाले मूर्ख(अज्ञानी) पुरुष को आकाश(का तारागण) चलता दिखायी देता है, इसी तरह सुख-दुःख आदि का अनुभव हमारा शरीर करता है, परन्तु अज्ञानी पुरुष समझता है कि यह अनुभव उसकी आत्मा को हो रही है । वस्तुतः आत्मा तो अचल है, देह में ही सब गतियाँ(सुख-दुःख आदि वेदनायें) होती है, इसी तरह लाव और चड़स ही चलते हैं, कुआ तो अपनी जगह स्थिर(अचल) है ॥१॥
(क्रमशः)

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