मंगलवार, 31 अक्टूबर 2017

= साधु का अँग =(१५/१३-५)


#daduji


卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*साधु का अँग १५*
*साधु संग महिमा* 
सँसार विचारा जात है, बहिया लहरि तरँग । 
भेरे१ बैठा ऊबरे, सत साधू के संग ॥१३॥ 
१३ - २२ में सँत - संग की महिमा कह रहे हैं - सँसार के दीन प्राणी विषय - समुद्र की वासना रूप लहर और तृष्णा - तरँगों में बहे जा रहे हैं, उनमें से कोई सच्चे सँत के संग रूप बेड़े१(जहाज) में बैठता है, वही उक्त तरँगों से पार होता है । 
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दादू नेड़ा परम पद, साधू संगति माँहिं । 
दादू सहजैं पाइये, कबहूं निष्फल नाँहिं ॥१४॥ 
सँत - संग में बैठने से परमपद स्वरूप ब्रह्म समीप ही ज्ञात होता है और व्यापक होने से अनायास ही प्राप्त होता है । सँत - संग कभी भी निष्फल नहीं होता ।
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दादू नेड़ा परम पद, कर साधू का संग ।
दादू सहजैं पाइये, तन मन लागे रँग ॥१५॥

परम पद रूप ब्रह्म पास ही है, सँतों के सत्संग द्वारा जब तन मन में ब्रह्म - परायणता रूप रँग लगता है, तब वह अनायास ही प्राप्त हो जाता है ।
(क्रमशः)

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