सोमवार, 9 अक्टूबर 2017

= भेष का अंग =(१४/१-३)

#daduji


卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*भेष का अँग १४*
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सांच - अँग के अनन्तर इन्द्रियार्थी और आत्मार्थी भेष का विचार करने के लिये “भेष का अँग” कथन करने में प्रवृत्त प्रथम मँगल कर रहे हैं - 
दादू नमो नमो निरंजनँ, नमस्कार गुरुदेवत: ।
वन्दनँ सर्व साधवा, प्रणामँ पारँगत: ॥१॥
जिनकी कृपा से साधक, भेष की पक्षपात से पार होकर, निरंजन राम को प्राप्त होता है, उन निरंजन राम, सद्गुरु, और सर्व सँतों को हम अनेक प्रणाम करते हैं ।
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*पतिव्रत निष्काम*
दादू बूडे ज्ञान सब, चतुराई जल जाइ ।
अँजन मँजन फूंक दे, रहे राम ल्यौ लाइ ॥२॥
२ - ३ में अनन्यता की प्रेरणा कर रहे हैं - साधक ! सँपूर्ण साँसारिक ज्ञान चाहे समुद्र में डूब जायं, सब चतुराई जल जाय, तुझे इनसे क्या लाभ है ? तू तो सौंदर्य के साधन - नेत्राँजन, दाँत - मँजन, उबटनादि पूर्वक स्नानादि को त्याग दे । केवल निरंजन राम में ही अपनी वृत्ति लगा कर रह ।
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राम बिना सब फीके लागैं, करणी कथा गियान ।
सकल अविरथा कोटि कर, दादू योग धियान१ ॥३॥
निरंजन राम की अनन्य भक्ति बिना, तीर्थ, व्रत, यज्ञादि कर्त्तव्य और ज्ञानादि की कथाएं भी बिना नमक के शाक समान फीके ही लगते हैं । चाहे सकाम देवतादि के ध्यान१, हठ योगादिक नाना साधन करो, बिना परब्रह्म की अनन्यता के वे सभी व्यर्थ हैं=ब्रह्म साक्षात्कार करने में वे सार्थक नहीं हैं । 
(क्रमशः)

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