卐 सत्यराम सा 卐
*दादू जैसा ब्रह्म है, तैसी अनुभव उपजी होइ ।*
*जैसा है तैसा कहै, दादू विरला कोइ ॥*
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साभार ~ Vijay Divya Jyoti
क्या आपने कभी प्रकाश देखा है?
Have you ever seen the light?
क्या है प्रकाश ? प्रकाश वो माध्यम है जो जब किसी वस्तु पर पड़ता है तो उसे दृश्यमान(visible) बना देता है, प्रकाशित कर देता है। एक वृक्ष है जो सूरज की रोशनी में तो दिखाई देता है लेकिन रोशनी ना हो, तो अंधकार फ़ेल जाता है और वही वृक्ष दिखाई देना बंद हो जाता है। हम सामान्यतया कह देते हैं कि रोशनी गयी। जब दीया जलता है तो उसकी लौ दिखाई देती है, दीया भी दिखाई देता है और जो आसपास वस्तुएँ हैं, वो भी दिखाई देती है लेकिन प्रकाश नहीं दिखाई देता क्योंकि हम प्रकाश को देख ही नहीं सकते। आप सोच सकते है कि क्या बेवकूफी वाली बात है?
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लेकिन गौर फरमाइएगा कि ये बड़े मज़े की बात है कि आपने कभी भी प्रकाश नहीं देखा है, केवल प्रकाशित वस्तुएँ ही देखी हैं। प्रकाशित वस्तुओं अर्थात चीजों से हम अनुमान लगाते हैं कि प्रकाश है। दीये की लौ दिखाई देती है क्योंकि प्रकाशित है। दीया दिखाई देता है क्योंकि प्रकाशित है, लौ की वजह से। सूरज दिखाई देता है क्योंकि प्रकाशित है, वृक्ष दिखाई देता है क्योंकि प्रकाशित है। सूरज अपने आप में रोशनी नहीं है, दीया भी अपने आप में रोशनी नहीं केवल एक वस्तु है जो प्रकाशरूपी माध्यम से प्रकाशित है।
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Light is a medium which when falls on objects, makes them visible or it can be said that in the presence of light we are able to see the objects but not the light. In the same way as we can see a waving tree but not the wind which makes it wave.
फिर से सोचिए कि क्या आपने प्रकाश देखा है? नहीं हमने केवल प्रकाश का परिणाम देखा है अर्थात प्रकाशित objects देखे हैं। अभी इसी वक़्त देखिये आकाश की तरफ, जो भी दिखाई देगा वो प्रकाशित है, प्रकाश नहीं। हवा से लहराता हुआ पेड़, हवा का परिणाम है हवा नहीं।
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मित्रों कहने का आशय सिर्फ यह है कि जो भी इस संसार में है, वो परमात्मा(अर्थात light) से प्रकाशित है और ये सब जो भी उससे प्रकाशित है, हमें वही दिखाई देता है लेकिन स्वयं परमात्मा नहीं। परमात्मा केवल मससूस किया जा सकता है। परमात्मा का अनुभव नहीं होता बल्कि यदि सही कहा जाय तो अनुभव की एक परम और चरम अवस्था है, जिसे हम परमात्मा कहते हैं।
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परमात्मा कोई व्यक्ति विशेष नहीं जो किसी लोक में अपना सिंहासन लगाकर बैठा हो। जीवन में परमात्मरूपी रोशनी(light) की तीव्रता जितनी बढ़ती जाएगी, उतना ही स्पष्ट दिखता चला जाएगा और जितनी स्पष्टता(clarity) बढ़ती जाएगी, उतना ही परमात्मानुभव होता जाएगा। यही सत्यमार्ग की यात्रा है।
॥ॐ श्री गुरुवे नमः॥

Тоді як я розумію мої думки, і в будь-якому конкретному випадку.
जवाब देंहटाएंफिर मैं अपने विचारों को कैसे समझता हूं, और किसी विशेष मामले में.
किसी भी स्थिति में अपने विचारों को शब्दों में पूर्णरूपेण लिख पाना संभव नहीं है
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