शनिवार, 7 अक्टूबर 2017

= ९१ =


卐 सत्यराम सा 卐
*दादू जे कुछ खुसी खुदाइ की, होवेगा सोई ।*
*पच पच कोई जनि मरै, सुन लीज्यो लोई ॥* 
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साभार ~ Archana Maheshwari
*ध्यान*
शांति पाने की कोशिश मत करें, अशांति को स्वीकार कर लें - आप शांत हो जायेंगे। फिर दुनिया में कोई आपको अशांत नहीं कर सकता। अगर मैं अशांति के लिए राजी हूं, कौन मुझे अशांत कर सकता है? अगर मैं गाली के लिए तैयार हूं तो कौन मेरा अपमान कर सकता है? मैं गाली के लिए राजी नहीं हूं इसलिए कोई मेरा अपमान कर सकता है। मैं अशांति के लिए राजी इसलिए कोई भी अशांत कर सकता है।
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अगर हम ठीक से मन की प्रक्रिया को समझ लें, तो मन की प्रक्रिया को समझकर जीवन बदल जाता है। प्रक्रिया ये है की मन हमेशा चीजों को दो में तोड़ देता है -मान-अपमान, सुख-दुःख, शांति-अशांति, संसार-मोक्ष। और कहता है एक नहीं चाहिए, अरुचिकर है, और एक चाहिए रुचिकर है - बस ये मन का खेल है।
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इस मन से बचने के दो उपाय हैं - या तो दोनों के लिए राजी हो जाये - मन मर जायेगा। या दोनों को छोड़ दे, मन मर जायेगा। जो आपके लिए अनुकूल पड़े वैसा कर लें - अन्यथा आपके शांत होने का कोई उपाय नहीं है। जब तक आप शांत होना चाहते हैं, तब तक शांत न हो सकेंगे। जब तक सुखी होना चाहते हैं दुःख आपका भाग्य होगा, और जब तक मोक्ष के लिए पागल हैं, संसार आपकी परिक्रमा होगी। दोनों के लिए राजी हो जायें-मांग ही छोड़ दे - कह दे जो होता है मैं राज़ी हूं।
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इसका थोडा प्रयोग करके देखे - २४ घंटे, ज्यादा नहीं। लड़ने का प्रयोग तो आप जन्मों से कर रहे हैं, एक २४ घंटे तय कर ले, कि आज सुबह ६ बजे से कल सुबह ६ बजे तक जो भी होगा, उसको मैं स्वीकार कर लूँगा, जहाँ भी हो विरोध, द्वन्द नहीं खड़ा करूंगा।
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करके देखें, २४ घंटे में आपकी जिंदगी में एक नई हवा का प्रवेश होगा। जैसे कोई झरोखा अचानक खुल गया, और ताजी हवा आपकी जिन्दगी में आनी शुरू हो गई। फिर ये २४ घंटे कभी खत्म न होंगे। एक दफा इसका अनुभव हो जाये, फिर आप इसमें गहरे उतर जाएँगे। कोई विधि नहीं है शांत होने की, शांत होना जीवन- दृष्टी है। अशांति को स्वीकार कर लें, दुःख को स्वीकार कर लें, मृत्यु को स्वीकार कर ले, फिर आपकी कोई मृत्यु नहीं है।
*"जिसे हम स्वीकार कर लेते हैं, उसके हम पार हो जाते हैं".......*
ओशो

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