#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*साधु का अँग १५*
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दादू नेड़ा परम पद, साधू संगति होइ ।
दादू सहजैं पाइये, साबित सन्मुख सोइ ॥१६॥
सँतों की संगति द्वारा जब ब्रह्म की व्यापकता का ज्ञान होता है तब परम पद रूप ब्रह्म समीप ही प्रतीत होने लगता है और जब वृत्ति ब्रह्म - परायण होकर अखँड ब्रह्माकार रहती है तब वह ब्रह्म प्रत्यक्ष रूप में अनायास ही प्राप्त होता है ।
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दादू नेड़ा परम पद, साधू जन के साथ ।
दादू सहजैं पाइये, परम पदारथ हाथ ॥१७॥
सँतों के साथ रहकर उनके समान साधन करने से प्राणी को परम पद अत्यन्त समीप अर्थात् अपना स्वरूप ही भासने लगता है और निदिध्यासन की परिपाकावस्था में वह परम पदार्थ स्वरूप ब्रह्म अनायास ही अभेद रूप से प्राप्त हो जाता है ।
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साधु मिले तब ऊपजे, हिरदै हरि का भाव ।
दादू संगति साधु की, जब हरि करे पसाव१॥१८॥
सँतों का समागम होता है तब प्राणी के हृदय में भगवान् का विश्वास उत्पन्न होता है और जब हरि अनुकूल होकर कृपा१ करते हैं तब सँतों की संगति प्राप्त होती है ।
(क्रमशः)

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