🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= आत्मा अचलाष्टक(ग्रन्थ २१) =*
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*सप्तम उदाहरण -*
*गंगा बहती कहत हैं, गंगा वाही ठौर१ ।*
*पानी बहि बहि जात है, कहै और की और ॥*
(१. गंगा वाही ठौर = विष्णु की पावनी शक्त रूपी देवता श्री गंगाजी तो स्थिर है, जलधारा उनका स्थूल आकार बहता है ।
(इसी भ्रमात्मक अस्थिरता के विषय में सातवी उपमा सुनिये --) दुनिया कहती है -‘गंगा बह रही है’; परन्तु गंगा तो स्थिर है, बहता है वहाँ पानी । बैवकूफ़ लोग पानी को बहता हुआ न कहकर उसके बिल्कुल विपरीत गंगा बहता हुआ कहते हैं, यह उनकी बुद्धि की बलिहारी है !
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*अष्टम उदाहरण -*
*कहै और की और, परत हा देखत खाडी२ ।*
(२.परत है देखत खाडी = यह नदी है, परन्तु जहाँ विशाल है वहां उसको खाडी(छोटा समुद्र) कहते हैं । गड़ी ऊखली कहै - ऊखली में श्लेष है - १ ऊखली पत्थर की, २ उखड़ी हुई । चलि कौं गाड़ी = गाड़ी में श्लेष हा - १ गाड़ी लकड़ी की शकटा, २ गड़ी हुई । इन उदाहरणों में सामान्य अर्थ व ग्रन्थ के प्रयोजन से भिन्नता है ।)
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*नवम, दशम उदाहरण -*
*गडी ऊखली कहै कहै, चलती कौं गाडी ।*
*सुन्दर आतम अचल, देह हलचल ह्वै भंगा ।*
*पांनी बहि जाइ, बहै कबहू नहिं गंगा ॥५॥*
(अब आठवाँ, नौवाँ, दसवाँ उदाहरण, जो कि अन्यथा-कथन में ही घटेंगे, देहात्म-प्रसंग में नहीं, देते हैं --) इतना ही नहीं, ये बेवकूफ लोग विशाल समुद्र को खाड़ी कहते हैं, धान कूटने की गड़ी हुई चीज को ऊखली(उखड़ी हुई) और चलती हुई को गाड़ी(गड़ी हुई) कहते हैं । महाकवि कहते है - इसी तरह आत्मा तो अचल है, इसके विपरीत देह ही उसी प्रकार हलचल(इस योनि से उस योनि में आना-जाना) और उत्पाद-नाश को प्राप्त होता है जैसे गंगा का पानी, न कि गंगा ॥५॥
(क्रमशः)

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