#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*साधु का अँग १५*
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निराकार सौं मिल रहे, अखँड भक्ति कर लेह ।
दादू क्यों कर पाइये, उन चरणों की खेह ॥८५॥
जो अँखड भक्ति द्वारा निराकार ब्रह्म से मिलकर अपने को अखँड बना लेते हैं, वे ही सँत हैं । उन सँतों के चरणों की रज सहज में कैसे प्राप्त हो सकती है ?
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साधु सदा सँयम रहे, मैला कदे न होइ ।
दादू पँक परसै नहीं, कर्म न लागे कोइ ॥८६॥
सँत सदा सँयम से रहता है, उसका अन्त:करण कभी भी मैला नहीं होता । कारण, वह किसी भी निषिद्ध कर्म में नहीं लगता, इसीलिए उसे पाप रूप कीचड़ स्पर्श नहीं करता ।
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साधु सदा सँयम रहे, मैला कदे न होइ ।
शून्य सरोवर हँसला, दादू विरला कोइ ॥८७॥
सन्त सदा सँयम से रहता है, उसका अन्त:करण अविद्या - मल से मैला कभी नहीं होता; किन्तु ब्रह्म - सरोवर पर रहने वाला ऐसा जीवन्मुक्त सँत - हँस कोई विरला ही मिलता है ।
(क्रमशः)
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