卐 सत्यराम सा 卐
*अर्थ आया तब जानिये, जब अनर्थ छूटे ।*
*दादू भाँडा भरम का, गिरि चौड़े फूटे ॥*
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साभार ~ Hansraj Taneja via @Ravi Kant
निर्वाण उपनिषद --ओशो (प्रवचन --14)
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इसलिए संन्यासी के पास अगर कोई रहे, तो बड़ी मुश्किल में पड़ जाता है। संन्यासी तो मुश्किल में होता है अपने ढंग की, लेकिन उसकी मुश्किल तो ठीक है, उसके पास कोई रहे, तो बहुत मुश्किल में पड़ जाता है। क्योंकि संन्यासी भ्रम नहीं पोसना चाहता और जो भी उसके पास रहेगा, वह भ्रम पोसना चाहता है। अगर संन्यासी सत्य के ही साथ सीधा जीता है, तो जो भी उसके निकट है, वह अड़चन में पड़ना शुरू हो जाता है। क्योंकि संन्यासी ऐसी बातें कहेगा, इस ढंग से जीएगा कि आप अपने भ्रमों को न पोस पाएंगे। इसलिए एक बहुत दुर्घटना इस जमीन पर घटती रही है और वह यह है कि इस जमीन पर जिन लोगों ने भी सत्ये की खोज की है, उनके आसपास के लोग कभी भी उनको प्रेम भी नहीं कर पाए और कभी उनको समझ भी नहीं पाए।
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सुकरात की पत्नी तक, जो निकटतम थी उसके, उसको नहीं समझ पाई, क्योंकि सुकरात कोई भ्रम में सहायता न देगा । तो सुकरात और उसकी पत्नी की कलह अनिवार्य हो गई, क्योंकि पत्नी चौबीस घंटे भ्रमों की मांग कर रही है और सुकरात कोई भ्रम नहीं दे सकता। पत्नी के मन में कहीं तो आकांक्षा होती है कि कभी सुकरात कहे कि तुम सुंदर हो। लेकिन सुकरात कहता है, सौंदर्य तो मन का भाव है। शरीर से उसका कोई संबंध नहीं है। खयाल है। उसका कोई अर्थ नहीं है। अब यह पत्नी बड़ी मुश्किल में पड़ेगी। पत्नी चाहती है कि सुकरात कभी कहे कि तुम्हारे बिना मैं न जी सकूंगा। सुकरात कहता है, सब सबके बिना जी सकते हैं। बल्कि अगर सुकरात से सच पूछो,तो वह कहेगा कि तुम्हारे बिना मैं ज्यादा आसानी से जी सकूंगा। लेकिन यह पत्नी के मन को तो बड़ी तकलीफ होगी, बड़ी पीड़ादाई हो जाएगी बात। बहुत कठिन हो जाएगा, क्योंकि उसके कोई सपने खडे न हो पाएंगेे और वह तैयारी में नहीं है तोड़ने की।
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इसलिए जब जीसस ने अपनी मां को कहा कि कोई मेरी मां नहीं है, कोई मेरा पिता नहीं है, तो हम समझ सकते हैं कि मां को कैसी पीड़ा हुई होगी। बेटा चोर होता, बेईमान होता और कह देता कि कोई मेरी मां नहीं, तो मां प्रसन्न भी हो सकती थी कि झंझट मिटी। बदनामी अपने सिर न आएगी। बेटा हो गया है पैगंबर। हजारों लोग उसे भगवान का बेटा मानने लगे हैं। मां बहुत आतुरता से आई होगी कि भीड़ के सामने जीसस कह देगा कि तू मेरी मां है। और जीसस ने कह दिया कि नहीं, कौन किसकी मां! कौन किसका बेटा! कोई किसी का कोई भी नहीं है। तो हम समझ सकते हैं कि मां को, मां के भ्रम को कैसा धक्का लगा होगा।
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जब बुद्ध ने अपने पिता को कहा कि आप नहीं जानते कि मैं कौन हूं आप मुझे नहीं पहचानते। तो बुद्ध के पिता तो क्रोध से भर गए। उन्होंने कहा, मैं तुझे नहीं पहचानता? मैंने तुझे पैदा किया! ये तेरी हड्डीयां, और तेरा खून, और तेरा मांस मेरा है। तेरी रगों में जो बह रही है ताकत, वह मेरी है। और मैं तुझे नहीं पहचानता? तू नहीं था, उसके पहले मैं था। बुद्ध ने कहा, वह सब ठीक है। वह खून भी आपका होगा, हड्डियां भी आपकी होंगी, वह शरीर भी आपका होगा, लेकिन मेरा उससे कुछ लेना—देना नहीं, मैं और ही हूं। बुद्ध के बाप ने कहा, तू मुझ से पैदा हुआ है ! बुद्ध ने कहा, वह भी ठीक है। लेकिन आप एक चौराहे की तरह थे, जिस पर से मैं आया, लेकिन मेरी यात्रा आपके मिलने के बहुत पहले से चल रही है। आप एक रास्ता थे, जस्ट ए पैसेज, जिससे मैं आया, वह ठीक है। लेकिन अगर दरवाजा यह कहने लगे कि चूंकि मैं उसमें से निकला, इसलिए वह मुझे जानता है, तो आति हो जाएगी। बाप तो आग—बबूला हो गया। उन्होंने कहा, तू मुझे सिखाता है? सभी बाप आग—बबूला हो जाएंगे कि तू मुझे सिखाता है? बुद्ध सत्य की बात कर रहे हैं, कठिनाई वहीं है और बाप अभी भ्रमों के बीच जीना चाहता है।
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बुद्ध की पत्नी ने अपने बेटे को कहा कि राहुल, अपने बाप से वसीयत मांग ले। ये तेरे बाप खड़े हैं। व्यंग्य गहन था। बुद्ध के पास तो कुछ भी न था देने को। लेकिन पत्नी रोष में थी। यह आदमी छोड्कर भाग गया था। बेटे ने तो पहली दफा ही बुद्ध को होश में देखा था, क्योंकि बेटा तो पहले ही दिन का था, पैदा ही हुआ था, तब बुद्ध घर से निकल गए थे। बारह साल बाद लौटे हैं। तो राहुल को सामने खड़ा करके उनकी पत्नी ने कहा कि ये रहे तुम्हारे पिता, जिन्होंने तुम्हे जन्म दिया। भाग गए जन्म देकर। अब मिले हैं, मौका मत चूकना। फिर भाग जाएंगे। इनसे ले लो वसीयत कि मेरे लिए क्या देते हो जगत में! मुझे पैदा कर दिया, तो है क्या?
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बुद्ध की पत्नी जो व्यंग्य कर रही है, वह भ्रमों की दुनिया का व्यंग्य है। लेकिन बुद्ध ने कहा कि मेरे निकट आ, बड़ी संपदा मेरे पास है, वह मैं तुझे देता हूं। और जो दिया, वह भिक्षा—पात्र था। और आनंद को कहा, आनंद संन्यास में दाक्षित करो राहुल को। पत्नी तो कांप गई, रोने लगी, लेकिन राहुल दीक्षित हो चुका था। बुद्ध ने कहा, जो मेरे पास श्रेष्ठ है, वही तो मैं दूं। जो संपदा है, वही मैं दूं। जिसको छोड गया था, वह विपदा थी। अब मैं संपदा लेकर आया हू। वही मैं देता हूं।
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बुद्ध के बाप रोने लगे और उन्होंने कहा कि तू बर्बाद करके रहेगा। अकेला तू मेरा बेटा था। तेरे जाने से भारी उपद्रव हुआ। अब तेरा बेटा ही मालिक है सारे साम्राज्य का। इसको भी तू संन्यासी कर रहा है ! बुद्ध ने कहा, आप भी राजी हो जाएं। क्योंकि यह साम्राज्य पाकर आपको क्या मिला? मुझे छोड्कर क्या खो गया? और यह मेरा बेटा भी इसी चक्की में पिसता रहे, तो क्या मिल जाएगा? मैं इसे संपदा देता हूं। लेकिन सबको लगा कि बुद्ध भारी अन्याय कर रहे हैं। सारे गांव में दुख की लहर फैल गई कि बारह साल के लड़के को दीक्षा दे दी। हद अन्याय है। लेकिन बुद्ध जहां जीते हैं, वहा भ्रमों का जगत नहीं है। संन्यासी चौबीस घंटे भ्रम तोड़ने में लगा रहता है। और भ्रम टूटते हैं, तो ही तीन गुणों के पार यात्रा शुरू होती है।
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