#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*दादू यहु तन पिंजरा, मांहीं मन सूवा ।*
*एक नाम अल्लाह का, पढि हाफिज हूवा ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
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*सुमिरण का अंग २०*
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साधु वेद सारे कहैं, सब तज सुमिरण लाग ।
रज्जब रत रं कार यूं, मस्तक आया भाग ॥१७॥
सम्पूर्ण संत तथा सभी वेद यही कहते हैं कि सबको त्याग कर परमेश्वर के नाम स्मरण में ही लगो । इस प्रकार जो सबको छोड़कर राम मंत्र के बीज "राँ" स्मरण में ही अनुरक्त है, तो समझना चाहिये कि उसका भाग्योदय ही हुआ है ।
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रज्जब टीका नाम को, वेद कुरान सु देहिं ।
यू तत्त्ववेता त्याग सब, हरि सुमिरण कर लेहिं ॥१८॥
वेद तथा कुरान भी ईश्वर के नाम स्मरण को ही सब साधनों में श्रेष्ठ होने का वचन देते हैं । इसलिये भली भांति तत्त्व को जानने वाले सब कुछ त्यागकर हरि-स्मरण रूप साधन ही करते हैं ।
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नाम लाग नर निस्तरहिं, हिन्दू मुसलमान ।
उभय ठौर एकहि कही, रज्जब वेद कुरान ॥१९॥
वेद तथा कुरान रूप दोनों ही स्थानों में यह एक ही बात कही है कि क्या हिन्दू और क्या मुसलमान दोनों ही धर्म वाले नर ईश्वर नाम-स्मरण में लग कर संसार-सिन्धु से पार हो जाते हैं ।
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गगन गुडी कुंभ कूप ह्वै, त्यों व अगम नर नाथ ।
तो तीनों क्या दूर है, जे रज्जब रजु हाथ ॥२०॥
आकाश में पतंग है, घड़ा कुएँ में है, वैसे ही नरनाथ परमेश्वर दूर है, फिर भी यदि हाथ में रस्सी है, तो क्या दूर हैं ? पतंग उतारा जा सकता है, घड़ा बाहर निकाला जा सकता है, वैसे ही ईश्वर - स्मरण रूप डोरी अन्त:करण रूप हाथ में है, तो उन्हें प्राप्त करने में भी क्या देरी लगती है ?
(क्रमशः)
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