बुधवार, 27 दिसंबर 2017

= सहजानन्द(ग्रन्थ २७-१/२) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= अथ सहजानन्द(ग्रन्थ २७) =*
{यह सहजानन्द में यह बात प्रतिपादित की है कि ब्रह्मानन्द की प्राप्ति की क्रिया के आडम्बर से नहीं होती है । हिन्दू मुसलमान आदि धर्मों में जो जो विशेष विधि-विधान अनेक क्रियाकलाप -स्नान, संध्या, होम, जप, माला, तिलक, छापा, व् सुन्नत, रोजा, नमाज आदि कहे हैं और किये जाते हैं, उनको तत्वज्ञान के लाभ में नितान्त  आवश्यकता नहीं है -“सहजै नाम निरंजन लीजै” इत्यादि ही अलम् है । इसमें शंकर, सनकादिक, नारादादिक(पूर्व काल में) वा कबीर, रैदास, गोरख, गोपीचन्द, भतृहरि, पीपा, नामदेव, दादू (इत्यादि(इस काल में) जो तिर गये और तार गये प्रमाण हैं । आत्मज्ञान की सहज प्राप्ति ही सबसे उत्कृष्ट है । मनुष्य में सहज ज्ञान और सहज आनन्द के पाने की प्रकृति से ही अंतःकरण में स्वभाव है उसको बढ़ाने से ब्रह्मानन्द की प्राप्ति बाह्याडम्बर के बिना ही आ जाती है । सत्यज्ञानानन्द मिलने पर मूलसहित पूर्व संचित कर्मों का लय और आगे होनेवालों का निरोध हो जाता है ।} 
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*= स्वमतप्रतिपादन = चौपाई =*
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*प्रथमहिं निराकार निज बन्द ।* 
*गुरु प्रसाद सहजै आनन्दं ॥* 
*पूरण ब्रह्म अकल अविनाशी ।* 
*पञ्च तत्व को सृष्टि प्रकाशी ॥१॥* 
ग्रन्थ आरम्भ करने से पूर्व मैं उस स्वात्मस्वरूप निराकार ब्रह्म को प्रणाम करता हूँ । जिसकी गुरु की कृपा से प्राप्ति(साक्षात्कार) होने पर सहज(स्वाभाविक) आनन्द उपलब्ध होता है । जो ब्रह्म अपने आप में पूर्ण है, निर्विकार है, शाश्वत है, जिसके चैतन्य से यह समग्र महाभूतसृष्टि कर्मरत है ॥१॥ 
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*चिन्ह बिना सब कोई आये ।* 
*इहां भये दोइ पन्थ चलाये ॥* 
*हिन्दू तुरक उठ्यौ यह भर्मा ।* 
*हम दोऊ का छाड्या धर्मा ॥२॥*
इस सृष्टि में प्रत्येक प्राणी बिना किसी विशिष्ट चिन्ह के पैदा होता है, यहाँ पैदा होने पर ही(बाद में) सब अपना अपना मत चलाते हैं । अपने भ्रम के(मिथ्यादृष्टि) वश होकर कोई उनमें अपने को ‘हिन्दू’ कहाने लगता है, कोई मुसलमान । परन्तु हमने(सद्गुरु के उपदेश सुनने के बाद) उक्त दोनों ही मतों को छोड़कर तटस्थ मार्ग ग्रहण कर लिया है ॥२॥
(क्रमशः)

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