शनिवार, 2 दिसंबर 2017

= अजब ख्याल अष्टक(ग्रन्थ २५-१गी/३दो) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
.
*= अजब ख्याल अष्टक(ग्रन्थ २५) =*
.
*= गीतक =*
*उस्ताद सिर पर चुस्त दम कर,*
*इश्क अल्लह लाइये ।*
*गुजरान१० उसकी बंदगी मौं,*
*इश्क बुन क्यौं पाइये ।*
*यह दिल फकीरी दस्तगीरी१,*
*गस्त२ गुंज सिनाल३ है ।*
*यौं कहत सुन्दर कब्जदुन्दर४,*
*अजब ऐसा ख्याल है ॥१॥*
(१०. गुजरान = रहना ।) (१. दस्तगीरी = हाथ पकड़ना ।)
(२. गस्त = गश्त, बारंबार, अभ्यास ।)
{३. गुज्ज = गुज्जार, व गुह्य । सिनाल(अप्रशस्त शब्द है) ।}
{४. कब्जदुन्दर = जिसका द्वन्द(द्वैत वा हुई) मिट गया, निर्द्वंद्व ।}
जिज्ञासु को गम्भीर ज्ञान और कठोर अनुशासन वाले गुरु की देख-रेख में रहकर भगवान् के श्रीचरणों में ध्यान में मन को लगाना चाहिये । उसकी सेवा में रहना, बिना उनके श्रीचरणों में अत्यधिक अनुराग के, नहीं हो सकता । उस भक्त ! का हृदय जब तक वैराग्य को कसकर नहीं पकड़ेगा तब तक उस गुह्य तत्व(ब्रह्म) को प्राप्त करना कठिन है । यह बात सुनने में आश्चर्यजनक लग सकती है, परन्तु सचाई यही है कि जब तक जिज्ञासु सुख-दुःख, लाभ-हानि, जय-पराजय, शीत ताप आदि द्वन्द्वों पर विजय नहीं पा लेगा, उसे तत्वज्ञान नहीं हो पायगा ॥१॥
.
*= दोहा =*
*सुंदर रत्ता एक सौं, दिल मौं दूजा नेश ।* 
*इश्क महब्बति बंदगी, सो कहिये दुरवेश ॥३॥* 
महाकवि कहते हैं - जो एक अद्वैत ब्रह्म में लीन है जिसका उस निराकार ब्रह्म से ही स्नेह-अनुराग(सेव्यसेवक भाव) रह गया हो उसे ही दुरवेश(दरवेश) =(फ़कीर, त्यागी) कहते हैं ॥३॥ 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें