卐 सत्यराम सा 卐
*सो कुछ हम थैं ना भया, जा पर रीझे राम ।*
*दादू इस संसार में, हम आये बेकाम ॥*
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साभार ~ Santosh Mishra
*जय गुरुदेव..गुरुवाणी..(25-10-16)*🌷
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*जैसे कछुआ अंगों को समेट लेता है*.. ऐसे ही ज्ञानी अपने संयम में रहता है.. उसको दुनियां वाले नहीं जीत सकते हैं.. कोई कैसा भी चल रहा है ज्ञानी उसको बाघ्य करके ज्ञान नहीं देता है..पर श्रद्धावान लभते ज्ञानम्..
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*ब्रह्मज्ञानी सब बातों से उपराम है*.. वो किसी का ऐब नहीं देखता.. अंदर में सम भाव.. सम दृष्टि.. सम बुद्घि.. क्योंकि उसको किसी से कुछ नहीं चाहिए.. दुनियां में सब कैसे चलते हैं पर ज्ञानी सबसे अंसग होकर चलता है..
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*हम तुमको बता द्ते हैं कि क्या अमृत है क्या जहर है*.. अब जान बूई जहर पीना चाहे को कोई क्या करे.. ज्ञानी अंदर से सबसे निर्लिप्त हो जाता है.. हम आज की खुशी कल की सोचकर क्यो गंवाएँ.. जो कल होने वाला ह़ै वो तुमको पता ही नहीं है..जो हो चुका वो बीत गया.. तुम्हारे हाथ में केवल आज है.. आज खुश रहो..
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*जिनके लिए कमाकर इक्ट्ठा करते हो*.. वो भी छोड़कर जा सकता है.. ज्ञानी आज में रहता है.. पतीला आग पर चढ़ा है.. तो पानी खौल रहा है.. खोट अपने में है.. एक व्यक्ति बोल रहा था हमारे शरीर में दर्द है.. डाक्टर इलाज कर करके थक गए.. बाद में पता चला उसकी अँगुली में फ्रैक्चर था.. एक माई ने आइना उठाकर फैंक दिया.. बोली हमारे जमाने में आइने अच्छे होते थे.. आजकल आइने खराब बनते हैं.. तो खराब आइना है या वो बुढ़ी हो गई है.. शक्ल खराब हो गई..
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*हम कहते हैं आज का जमाना खराब है*.. पर हमारी नजर ही खराब है.. हम अपने अनुसार चलना चाहते हैं सबको.. अगर नही चलते तो खराब लगता है.. गुरु तुमको द्वैत ओर तृपुटी से दुर करता है.. तुम कहते हो हमको ईश्वर की प्रप्ति करनी है.. पर वो ईश्वर तु खुद है.. बुद्घ भगवान बोले हर बीज वृक्ष हो सकता है, पर वो मिटने को तैयार हो तो..
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*भगवान से कोई क्या मांगता है*.. जाकर मंगता फकीर बन जाता है.. बरसात बरस रही है बरक्त की पर प्यास बुझती है पुरुषार्थी की.. कबीर ने बोला घुंघट के पट खोल री तोहे पीया मिलेगे.. अपनी आस है.. बाकी किसी ने नहीं बँघा है.. यहाँ कोई आता है.. हम कहते हैं रुक जाओ.. पर नहीं रुकता है.. अपना मन ही माया में रुका बैठा है..
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*जैसे एक मछुारन अपनी सहेली के धर गई*.. रात में रुक गई तो उसको नींद ही नहीं आई.. बोली वास आ रही है.. उसकी सहेली समझ गई उसने मछली वाली टोकरी गीली करक़े सिरहाने रख दी.. तो सो गई.. बोली अच्छी नींद आ गई..
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*तुम्हें भी अपने धर में नींद आती है*... यहाँ से अपने घर जाते हो.. पोते पोतियां घेर कर बैठते हैं.. तब मजा आता है.. तब गुरु की मौज भी बताती हो.. मीरा तो भगवान के लिए जहर तक पी गई.. विष भी अमृत हो गया..
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*भजन तो सबको अच्छे लगते हैं पर कोई मीरा नहीं बनता है*... उससे बोला अपने पति के लिए करवा चौथ का व्रत रखो.. बोली रखूंगी पर अपने मोहन के लिए .. तो मंदिर के पट ही बंद कर दियेे गए.. पर उसके प्रेम में पट भी टुट गए.. तुम्हारे प्रेम में इतनी ताकत होनी चाहिए.. कि दुनियां के बंघन अपने आप टूट जायें..
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*जय गुरुदेव.. शत्-शत् नमन.. हरी ॐ सबको*🌷
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