卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*विचार का अँग १८*
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*सांच*
जब दर्पण माँहीं देखिये, तब अपना सूझे आप ।
दर्पण बिन सूझे नहीं, दादू पुन्य रु पाप ॥४॥
यथार्थ बात कह रहे हैं - जब दर्पण में देखा जाय तो अपना मुख और उस के गुण - दोष अपने आप ही दीख जाते हैं, दर्पण बिना नहीं दीखते । वैसे ही अंत:करण द्वारा ब्रह्म का प्रतिविम्ब और पाप - पुण्य रूप सँसार प्रतीत होता है । अंत:करण न हो तो एक अद्वैत ब्रह्म ही है ।
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*ज्ञान परिचय*
जींयें१ ते तिलन्न में, जींयें गँध फूलन्न ।
जींयें माखन खीर में, ईयें रब्ब२ रूहन्न३ ॥५॥
५ - ८ में ज्ञान द्वारा ब्रह्म का परिचय करा रहे हैं - जैसे१ तिलों में तेल, पुष्पों में सुगँध, दुग्ध में मक्खन है, वैसे ही सब जीवात्माओं३ में ब्रह्म२ व्यापक है ।
अकबर बादशाह ने पूछा था ब्रह्म सब में कैसे है, दृष्टांत द्वारा बताइये ? उसको ५ - ६ से उत्तर दिया था । प्रसंग कथा दृ - सु - सि - त - १२ - ३४२ में देखो।
Just as oil is in oil seeds, fragrance in flowers,
And butter in milk, so is God in the self.
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ईयें१ रब्ब रूहन्न में, जींयें रूह२ रगन्न ।
जींयें जेरो३ सूर माँ, ठँढो चन्द्र बसन्न ॥६॥
जैसे शरीर की नाड़ियों में आत्मा२, सूर्य में प्रकाश३, चन्द्रमा में शीतल गुण रहता है, ऐसे१ ही जीवात्माओं में ब्रह्म व्यापक है ।
(क्रमशः)
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