#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*दादू मन माला तह फेरिये जहँ आपै एक अनन्त ।*
*सहजैं सो सतगुरु मिल्या, जुग-जुग फाग बसन्त ॥*
*दादू सतगुरु माला मन दिया, पवन सुरति सूँ पोइ ।*
*बिन हाथों निश दिन जपै, परम जाप यूँ होय ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
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*भजन भेद का अंग २१*
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मणियें मोहन नाम सब, सूत समीर१ न मेर२ ।
जन रज्जब हित हाथ ले, आठों पहर सु फेर ॥२९॥
आन्तर माला बता रहे हैं - विश्वमोहन परमात्मा के सभी नाम मणियें हैं, प्राण१ वायु सूत है, इस आन्तर माला के सुमेरु२ नहीं होता अर्थात इसकी समाप्ति नहीं होती, निरन्तर फिरती ही रहती है । इसे हृदय से प्रेमरूप हाथ में लेकर अष्टपहर निरंतर ही फेरा कर ।
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अकलि१ कष्ट२ सेती३ घङै, मणियें नाम अनन्त ।
रज्जब माला मोहनी, सुमिरै साधू संत ॥३०॥
विचारशील व्यक्तियो ने बुद्धि१ के परिश्रम२ से३ भगवान के अनन्त नाम रूप मणियें बनायें हैं, उन नामों से बनी हुई मोहिनी माला द्वारा साधु-संत ही भगवान का स्मरण करते हैं ।
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पंच पचीसों त्रिगुण मन, ये मणिये जिव फेरि ।
रज्जब माला माँहिली, जोगेश्वर जप हेर ॥३१॥
पंच ज्ञानेन्द्रिय, पच्चीस प्रकृतियें, तीन गुण और मन ये ही माला के मणियें है । इनसे बनी हुई माला भीतरी माला कहलाती है । योगीश्वरों का जाप इसी माला द्वारा होता है अर्थात योगीश्वर उक्त सब को भगवत् परायण रखते हैं । हे जीव ! इस माला को विचार द्वारा खोजकर के निरंतर फेर ।
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मारुत मोज सु माला मणियें, मन हुं उधारण मंत ।
रज्जब जूना जाप यह, जोगेश्वर सुमिरंत ॥३२॥
सहज स्वभाव से चलने वाले श्वास ही माला के मणियें है और मन का विषयों से उद्धार करने के लिये संतों ने ऐसी ही माला फेरने की सलाह दी है पूर्व काल का यही जाप है । योगीश्वर लोग भी इसी तरह स्मरण करते थे ।
(क्रमशः)
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