रविवार, 28 जनवरी 2018

= ८४ =


🌷🙏#daduji🙏🌷
🌷🙏卐 सत्यराम सा 卐🙏🌷
*ना हम छाड़ैं ना गहैं, ऐसा ज्ञान विचार ।*
*मध्य भाव सेवैं सदा, दादू मुक्ति द्वार ॥* 
==========================
साभार ~ oshoganga.blogspot.com  
.
कल करना है इस नासमझी मे स्थगन नहीँ करना है। कल कभी आता नहीँ। कल पर छोड़ने के कारण ही हमेशा के लिये छूट जाता है। धार्मिक जीवन बेहद जीवंत, उत्तप्त आकांक्षाओँ का जीवन है। चौबीस घंटे, प्रत्येक क्षण जलती हुई एक आकांक्षा-प्रत्येक कर्म में, दैनंदिन क्षुद्रतम बातोँ में भी, जीवन चाहे घाटियोँ में घूमे, लेकिन दृष्टि सदा ऊंचे शिखरोँ पर लगी रहे। जीवन चाहे क्षुद्रतम, व्यर्थतम में खड़ा हो लेकिन दृष्टि सूरज पर हो। इतना हो जाए, सीमा मे खड़े हुए दृष्टि असीम पर टिकी रहे, शेष सब अपने से हो जाएगा।
.
चुंबक की तरह खीँचेगा कोई आकर्षण और प्यास की एक छोटी सी किरण तृप्ति के सागर मे परिवर्तित हो जाती है। कोई शिक्षा जरुरी नहीं है - प्यास जरुरी है। जो है उससे असंतुष्ट होना होगा, अतृप्त होना होगा। किसी से भी जो तृप्त हो जाएगा, वह नीचे रह जाएगा। क्षुद्र से, व्यर्थ से, सीमित से मनुष्य घिरा है और उससे संतुष्ट हो गया तो मनुष्य ने आत्मघात कर लिया। मन चंचल है, कहीँ तृप्त नहीँ होता, ये सौभाग्य है। एक-2 वासना के द्वार खटखटाओ, एक-2 इच्छा को तृप्त करने की चेष्टा करो, मन कहीँ नहीँ ठहरता क्योँकि मन परम को पाए बिना रुकेगा नहीँ, परमात्मा को पाए तो ही रुकेगा। मन भागता ही इसीलिये है कि क्षुद्र से तृप्त नहीँ हो सकता।
.
दिव्य चाहिये, भागवत; उसको पाने के पूर्व मन की चंचलता नहीँ मिटेगी। परमात्मा को पाते ही मन की चंचलता विलीन हो जाती है। मनुष्य उस परम को पा सके इसीलिये मन निरंतर चंचल है। मन की चंचलता ही मनुष्य को संसार से मोक्ष तक ले जाने का कारण बनती है। मन सहयोगी है, विरोधी नहीँ। मन साथी है, शत्रु नहीँ। मन ही संसार में ले आया, मन ही संसार के पार ले जाता है। स्मरणीय ये नहीँ कि मन बुरा है, स्मरणीय ये है कि मन की दिशा क्या है? मन यदि संसार मे लगा हुआ है तो मनुष्य संसार मे गति करेगा। मन यदि परमात्मा की तरफ मुड़ा है, मनुष्य परमात्मा मे गति करेगा। मन की अतृप्ति को परमात्मा की ओर दौड़ने दे मनुष्य।
.
विराग भी संसार है, राग भी संसार है। राग छूटे, विराग पकड़ ले - छूटना व्यर्थ हो गया। एक छूटा, दूसरा पकड़ गया। मनुष्य की सत्ता छोड़ने-पकड़ने के परे है। जो मनुष्य राग के प्रति ज्ञानयुक्त होकर होश से भरेगा, राग की परिपूर्ण सत्ता के प्रति जागरुक होगा; वो विराग को नहीँ पकड़ेगा - उसके राग - विराग दोनो विसर्जित हो जाएंगे। संसार को छोड़ना-पकड़ना नहीँ है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें