#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*मध्य का अँग १६*
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षट् दर्शन दोन्यों नहीं, निरालँब निज बाट ।
दादू एकै आसरे, लँघै औघट१
घाट ॥३७॥
सँत - जन, षट् दर्शन वो हिन्दू - मुसलमान दोनों
की ही पक्ष नहीं रखते । सभी मत - मतान्तरों का आश्रय त्याग, एक
परमात्मा का आश्रय लेकर अपने निष्पक्ष मध्य - मार्ग द्वारा सँसार - समुद्र के
जन्म - मृत्यु मय भयँकर१ घाट को लाँघते हैं ।
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दादू ना हम हिन्दू होहिंगे, ना हम मुसलमान ।
षट् दर्शन में हम नहीं,
हम राते रहमान ॥३८॥
न हम हिन्दू बनेंगे,
न मुसलमान । षट् दर्शन के भेषों में भी हम नहीं प्रवेश करेंगे । हम
तो दयालु राम के चिन्तन में रत हैं । हमें अन्यों से क्या काम है ?
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दादू अल्लह राम का,
द्वै पख तैं न्यारा ।
रहिता गुण आकार का,
सो गुरु हमारा ॥३९॥
जो अल्लाह और राम इन दोनों नामों में सम भाव रखकर दोनों
के पक्षपात से अलग है, और
नामों, गुणों तथा आकारों से रहित है, वही
परब्रह्म हमारा गुरु है ।
(क्रमशः)
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