#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*दादू माहैं मीठा हेत करि, ऊपर कड़वा राख ।*
*सतगुरु सिष कौं सीख दे, सब साधों की साख ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
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*सुमिरण का अंग २०*
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साहिब सबका एक है, राखै नाम अनेक ।
रज्जब समझे समझ ही, पूरण परम विवेक ॥३३॥
हिन्दू और मुसल्मानादि सभी का ईश्वर एक ही है किन्तु अपनी रुचि के अनुसार सभी भिन्न भिन्न नाम रख लेते हैं । जो समझे हुये संत होते हैं वे ही अपने श्रेष्ट विवेक द्वारा पूर्ण ब्रह्म के स्वरूप को समझते हैं ।
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रज्जब नाम सु एक के, अनन्तों कहे अनन्त ।
कोई सुमिर हु एक फल, वेत्ता१ वदति२ महन्त ॥३४॥
एक ही ईश्वर के अन्नत प्राणियो ने अनन्त नाम कथन करे हैं, तो कोई भी नाम का सुमिरण करो, इच्छा पूर्ति फल एक ही होगा । ऐसा ही ज्ञानी१ महन्त जन कहते२ हैं ।
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सोते सांई सुमिरिये, बैठा ब्रह्म समाल ।
रज्जब राम हिं ले उठो, लै१ लागा मधि चाल ॥३५॥
सोते समय भी ईश्वर का स्मरण करना चाहिये, बैठे हुये भी ब्रह्म का चिन्तन करना चाहिये, हृदय में राम का चिन्तन करते हुये ही उठना चाहिये, राम में वृत्ति लगाते हुये ही चलना चाहिये ।
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लीये सूता ले उठे, मुख हृदय हरि राम ।
जन रज्जब ज्यों जीव सब, अपने अपने काम ॥३६॥
जैसे सभी प्राणी अपने अपने काम में संलग्न रहते हैं, वैसे ही साधक को चाहिये कि - हृदय में हरि-चिन्तन और मुख से हरि नाम उच्चारण करता हुआ ही सोये और उठे ।
(क्रमशः)
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