बुधवार, 31 जनवरी 2018

= हरिबोल चितावनी(ग्रन्थ २९-१९/२०) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
.
*हरिबोल चितावनी(ग्रन्थ २९)*
.
*ख़ासा मलमल पहरते,*
*वस्तर बहुत अमोल ।*
*लई तनगटी १ तोरि कैं,*
*(सु) हरि बोलौ हरि बोल ॥१९॥*
(१. तनगटी=कनगटी(मरने पर शव पर से उसे भी उतार ली, तोरिकैं - कहने से यह भाव है कि मरे पीछे कुछ भी शरीर का लिहाज नहीं किया । शरीर के सब वस्त्रादि उतार कर जला दिया ।)
जो धनपति जीवन भर एक से एक महँगे वस्त्र का उपयोग करते थे, मरते समय उनके शरीर पर करधनी भी नहीं रहने दी जाती, अतः तू ऐयाशी के चक्कर में न पड़ और निरन्तर हरिस्मरण कर ॥१९॥
.
*चौवा चन्दन अरगजा,*
*सौंधै२ भीनी चोल ।*
*सो तन माटी मिलि गये,*
*(सु) हरि बोलौ हरि बोल ॥२०॥*
(२. सौंधे=सुगन्धिता । चोवा = चोआ = टपकाया हुआ सुगन्ध-द्रव्य । अरगजा = कई सुगन्धी द्रव्यों का चूर्ण कर पीठी सी बनायी जाति है । भीनी = सुगन्धी । चोल = चौल = एक प्रकार का सुगन्धित द्रव्य ।) अपने शरीर पर जीवन भर नाना प्रकार तेल इत्र-फुलेल लगाने वाले विलासियों के शरीर भी एक दिन मिट्टी में मिल गये । तूँ इस नश्वर शरीर पर क्या गर्व कर रहा है ।(अपनी भलाई चाहता है तो) निरन्तर ही हरिस्मरण कर ॥२०॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें