







*मीठे सौं मीठा भया, खारे सौं खारा ।*
*दादू ऐसा जीव है, यहु रंग हमारा ॥*
=======================
साभार ~ oshoganga.blogspot.com
.
मनुष्य अशांत है इसलिये बाहर की अशांति मनुष्य तक पहुंच जाती है? मनुष्य दुखी है इसीलिये बाहर का दुख मनुष्य तक पहुंच जाता है। मनुष्य तक वही पहुंचता है, जिसे पकड़ने को मनुष्य उत्सुक और आतुर है। मनुष्य दुखी है क्योँकि निरंतर केवल दुख को पकड़ने में ही समर्थ है। मनुष्य के भीतर आनंद की एक भी किरण उतर जाए तो ये सारा जगत आनंद में परिणित हो जाएगा।
.
क्योँकि तब मनुष्य केवल आनंद के प्रति ही संवेदनशील रह जाएगा। भीतर यदि आनंद है तो सारा जगत आनंद मे परिणित हो जाएगा। भीतर दुख है, अशांति है; चारो तरफ से अशांति दौड़ कर चली आती है। दुखी मनुष्य सारे जगत से दुख आता अनुभव करता है। दुखी मनुष्य के केन्द्र से देखा गया जगत संसार है। आनंद को उपलब्ध मनुष्य के केन्द्र से देखा गया जगत ब्रह्म है, परमात्मा है। आनंदित मनुष्य के लिये जगत आनंद की लीला है, आनंद-उत्सव है। आनंद की दृष्टि मे सारा जगत परमात्मा हो जाता है।
.
दुख की दृष्टि मे सारा जगत संसार हो जाता है। और आत्यंतिक दुख की स्थिति मे सारा जगत नर्क हो जाता है। दृष्टि बदलने के साथ जगत बदल जाता है। उस केन्द्र को उपलब्ध करना है जहां से दृष्टि डालने पर ये सारा जगत ब्रह्म हो जाता है। असत्य अनेक हो सकते हैँ, सत्य एक ही होता है। बीमारियां अनेक हो सकती हैँ, स्वास्थ्य एक ही होता है।
.
किसी ने भी अनेक सत्य और अनेक स्वास्थ्य होते हैँ, ऐसा न सुना है; न ही देखा है। केन्द्र एक ही होता है, परिधि पर बिन्दु अनेक हो सकते हैँ। सत्य एक है। धर्म एक है। इस जगत मे स्वयं के अतिरिक्त स्वयं के नजदीक और कोई भी नहीँ हो सकता। कोई लाख उपाय करे, लाख प्रेम करे, आसक्ति करे, आखिर मे पाएगा कि अब भी पर्याप्त दूरी है। दो बिंदु इस जगत मे इतने निकट नहीँ हो सकते कि दूरी एकदम समाप्त हो जाए। केवल एक ही बिंदु है जिससे दूरी नहीँ है, वह है मनुष्य का वास्तविक होना, वास्तविक मैँ।
.
सत्य को जानना है तो निकट पर ही पहली पकड़ और पहुंच करनी होगी। क्योँकि जो निकट को नहीँ जानता वह दूर को कैसे जानेगा? जो स्वयं से अपरिचित है, वो यदि सर्व को जानने चले तो निश्चित ही नासमझ और अज्ञानी है। सत्य का द्वार स्वयं से ही है। और कोई मार्ग कभी नहीँ था और कभी नहीँ हो सकेगा। सबसे पहले स्वयं को जानना होगा। लेकिन संपूर्ण पृथ्वी ग्रह पर मनुष्य और तो सब जान लेना चाहता है, केवल स्वयं को जानने का कोई प्रयास नहीँ करता।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें