卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
*मध्य का अँग १६*
.
*उभय असमाव*
दादू मेरा तेरा बावरे, मैं तैं की तज बाण ।
जिन यहु सब कुछ सिरजिया, करता ही का जाण ॥४०॥
४० - ५० में निष्पक्ष अद्वैत और पक्ष द्वैत, दोनों एक साथ हृदय में नहीं रहते, यह कहते हैं - हे बावरे प्राणी ! जिस परमेश्वर ने यह सँसार रचा है, सब कुछ उसी का जानकर "मेरा - तेरा, मैं - तू" आदि व्यवहार का स्वभाव त्याग दे ।
.
दादू करणी हिन्दू तुरक की, अपनी अपनी ठौर ।
दूहुँ बिच मारग साधु का, यहु सँतों की रह और ॥४१॥
हिन्दू और मुसलमानों का कर्त्तव्य कर्म - उपासनादि अपने अपने पक्ष द्वारा मंदिर - मस्जिदों में ही होता है किन्तु सँत तो परमात्मा को सर्वत्र व्यापक समझ कर निष्पक्ष मध्य - मार्ग द्वारा उपासना करते हैं । अत: सँतों का मार्ग उक्त दोनों से अन्य ही है ।
.
दादू हिन्दू तुरक का, द्वै पख पँथ निवार ।
संगति साचे साधु की, सांई को संभार ॥४२॥
हिन्दू और मुसलमान दोनों के पक्ष - विपक्ष पूर्ण मार्ग को छोड़कर सच्चे सँतों की संगति द्वारा परमात्मा का भजन करो ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें