







*दादू सहजैं सहज समाइ ले, ज्ञानैं बंध्या ज्ञान ।*
*सूत्रैं सूत्र समाइ ले, ध्यानैं बंध्या ध्यान ॥*
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साभार ~ oshoganga.blogspot.com
अज्ञान का अर्थ है कुछ ऐसा जिसे मनुष्य नहीँ जानता। अज्ञान समाप्त हो जाए तो एक स्थिति आएगी, जब मनुष्य कह सकता है कि मै सब जानता हूं। अज्ञान दूसरे से संबंधित था। कुछ अनजाना था, इसलिये अज्ञान था। अज्ञान अहंकार को निर्मित नहीँ करता, क्योँकि मनुष्य नहीँ जानता तो अहंकार कैसे निर्मित होगा? ज्ञान अहंकार को निर्मित करता है। जानना मैं को मजबूत करता है। जोर मैं पर पड़ता है। अहंकार अज्ञान से मजबूत नहीँ होता। अज्ञान में भूलेँ होती हैं, नासमझियां होती हैँ। बहुत-2 भूलेँ, बहुत-2 नासमझियां होती हैँ।
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ज्ञान में एक ही भूल, एक ही नासमझी होती है, वह है अहंकार। अज्ञान में बहुत बीमारियां घेरती हैँ, ज्ञान में केवल एक बीमारी घेरती है। वह है अहंकार। ध्यान रहे, सब बीमारियोँ के जोड़ से भी बड़ी बीमारी अहंकार है। तो प्रक्रिया है ज्ञान से अज्ञान को मिटाएं। लेकिन फिर ज्ञान को पकड़ कर न बैठ जाएं। पैर मे कांटा लग जाए तो दूसरे कांटे से उस कांटे को निकालना पड़ता है। लेकिन दूसरा कांटे को क्योँकि उसने सहायता दी, तो उसे कांटा न समझा तो भूल होगी। ये पहले कांटे को निकाल ही इसलिये पाया क्योँकि ये भी कांटा है, और पहले कांटे से मजबूत कांटा है।
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मनुष्य ने यदि सोचा कि इस कांटे ने कृपा की कि पहले कांटे से छुटकारा दिलाया तो मनुष्य कांटे से छूटा जरुर लेकिन और बड़े कांटे मे बिंध गया। मनुष्य फिर इस कांटे से छुटकारा न पा सकेगा। अज्ञान चुभता था, घाव करता था, उसमें ही दुख था। अब घाव ये दूसरा कांटा-ज्ञान-करेगा और दुख जारी रहेगा। इस कांटे को भी फेँकना होगा, वह भी कांटा ही है। अज्ञान को निकालना है ज्ञान से, लेकिन ज्ञान को पकड़कर नहीँ रखना है; यही वेदांत का निहित अर्थ है। फेँक दे ज्ञान को भी। ज्ञान की उपादेयता अज्ञान के कांटे को निकालने तक ही है। अज्ञान का कांटा निकलते ही, ज्ञान व्यर्थ है।
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ठीक से समझा जाए तो औषधि की जरुरत मनुष्य को नहीँ है, बीमारी को औषधि की जरुरत है। जैसे ही बीमारी गई, औषधि व्यर्थ हो गई। ज्ञान मनुष्य को नहीँ चाहिये, ज्ञान मनुष्य की अज्ञान की बीमारी को काटने की औषधि मात्र है। औषधि को मनुष्य यदि पकड़ ले तो छुड़ाना बेहद कठिन है। क्योँकि औषधि शत्रु नहीँ, मित्र प्रतीत होती है। जो बीमारी मित्र प्रतीत होने लगे, उससे छूटना बेहद कठिन है। ज्ञान ऐसा ही शत्रु है जो मित्र दिखाई देता है क्योँकि अज्ञान के शत्रु को मिटाता है, हटाता है।
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