#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*मध्य का अँग १६*
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*मध्य *
दादू पखा पखी सँसार सब, निर्पख विरला कोइ ।
सोई निर्पख होइगा, जाके नाम निरंजन होइ ॥५२॥
५२ - ५४ में निष्पक्ष मध्य - मार्ग की
विशेषता दिखा रहे हैं - सब सँसार के प्राणी पक्ष - विपक्ष में बद्ध हैं । कोई
विरला ही निष्पक्ष होता है,
जिसके हृदय में निरन्तर निरंजन राम का चिन्तन होता है, वही सँत निष्पक्ष हो सकेगा ।
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अपने अपने पँथ की, सब को कहै बढाइ ।
तातैं दादू एक सौं, अंतरगति ल्यौ लाइ ॥५३॥
सब कोई अपने - अपने पँथ की महिमा बढ़ा कर
ही कहते हैं । इसलिये सब से निष्पक्ष होकर शरीर के भीतर हृदय में स्थित एक आत्म -
स्वरूप राम में ही वृत्ति लगाओ ।
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दादू द्वै पख दूर कर,
निर्पख निर्मल नाँव ।
आपा मेटे हरि भजे,
ताकी मैं बलि जाँव ॥५४॥
जो भेदवादियों के पक्ष को दूर कर निष्पक्ष हो, सब प्रकार के अनात्म अहँकार को मिटा कर
निर्मल नाम द्वारा परमात्मा को भजता है; उसकी हम बलिहारी
जाते हैं ।
(क्रमशः)
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