बुधवार, 3 जनवरी 2018

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#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
ऐसो राजा सेऊँ ताहि, और अनेक सब लागे जाहि ॥ टेक ॥
तीन लोक ग्रह धरे रचाइ, चंद सूर दोऊ दीपक लाइ ।
पवन बुहारे गृह आँगणां, छपन कोटि जल जाके घरां ॥ १ ॥
राते सेवा शंकर देव, ब्रह्म कुलाल न जानै भेव ।
कीरति करणा चारों वेद, नेति नेति न विजाणै भेद ॥ २ ॥
सकल देवपति सेवा करैं, मुनि अनेक एक चित्त धरैं ।
चित्र विचित्र लिखैं दरबार, धर्मराइ ठाढ़े गुण सार ॥ ३ ॥
रिधि सिधि दासी आगे रहैं, चार पदारथ जी जी कहैं ।
सकल सिद्ध रहैं ल्यौ लाइ, सब परिपूरण ऐसो राइ ॥ ४ ॥
खलक खजीना भरे भंडार, ता घर बरतै सब संसार ।
पूरि दीवान सहज सब दे, सदा निरंजन ऐसो है ॥ ५ ॥
नारद गावें गुण गोविन्द, करैं शारदा सब ही छंद ।
नटवर नाचै कला अनेक, आपन देखै चरित अलेख ॥ ६ ॥
सकल साध बाजैं नीशान, जै जैकार न मेटै आन ।
मालिनी पुहुप अठारह भार, आपण दाता सिरजनहार ॥ ७ ॥
ऐसो राजा सोई आहि, चौदह भुवन में रह्यो समाहि ।
दादू ताकी सेवा करै, जिन यहु रचिले अधर धरै ॥ ८ ॥
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साभार ~ Krishnacharandas Aurobindo 
ब्रह्माजी के एक दिन में एक हज़ार चतुर्युगी के एक द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण का धरती पर अवतार होता है। ऐसे ही भगवान श्रीराम भी ब्रह्माजी के एक हज़ार चतुर्युगी के दिन में एक बार ही आते हैं। जब भगवान श्रीकृष्ण स्वयम् आते हैं तब भगवान का अनंतकोटी योजन विस्तारवाला गोलोक भी अंशरुप से धरती पर अवतरित होता है। भगवान अपने एक अंश से(१/४) अनंत कोटी ब्रह्माण्डों के रूप में व्यक्त होते हैं तो उस अनंतकोटी ब्रह्माण्डों के चारों ओर से बहुत बड़ा अव्यक्त आकाश के घेरे के बाद विराजा नदी का घेरा(जिससे गंगाजी अवतरित हुई) है...
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.... और उसके बाद ही भगवान के गोलोक का घेरा है.... जिसका वर्णन इन्द्रियातीत है.... मन से आप उसकी कल्पना नहीं कर सकते। एक ब्रह्माण्ड ही हमारी कल्पना में नहीं आ सकता जिसमें असंख्यात तारे.... ग्रहादि हैं.... तो अनंत कोटी ब्रह्माण्ड(जिसमें निरंतर असंख्यात ब्रह्माण्डों की सृष्टि, स्थिति और लय की प्रक्रिया चल रही है।) हमारी कल्पना में आ ही कैसे सकतेहैं...?? ऐसे में अनंत ब्रह्माण्डों की सृष्टि के बाहर से घेर कर स्थित गोलोक के विस्तार की कोई कल्पना भी कैसे कर सकता है...??? ऐसे गोलोक में अनंत कोटी गोप -गोपियों के साथ भगवान की गौचारण, रासादि लीला निरंतर चल रही है। 

भगवान का जब धरती पर आगमन हुआ तब भगवान के सभी सखा/परिकर भी व्रज(वृँदावन) में प्रकट हुए। भागवत में महारास के वर्णन में अनंतकोटी गोपियों के साथ(श्रीललिता, श्रीविशाखादी अष्ट प्रधान सखियों के अपने अपने यूथ हैं और एक यूथ में सौ करोड़ गोपियाँ होती हैं... श्रीगंगा-श्रीयमुना-श्रीयोगमाया(श्रीराधा-कृष्णकी लीला, रासादिका आयोजन करनेवाली पुर्णमासीजी) आदि के भी ऐसे ही अलग यूथ हैं। ऐसे अनेकानेक यूथ ८४ कोस व्रज में कैसे समाहित हो सकते हैं...??? भगवान की अचिन्त्य योगमाया ऐसे ही अचिन्त्य असंभव घटनाओं को घटाती हैं।
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भगवान का महारास ब्रह्मा जी के एक रात्रि भर में हुआ है और ये योगमाया ने मनुष्यों की एक रात्री में घटा दिया। ऐसे ही ४८ कोस के द्वारका में भगवान के ५६ करोड़ यादववंशी तथा उनके सैनिक, सेवक, दास-दासीयाँ जिनकी संख्या बहुत थी योगमाया ने बसाये और सभी यादवों के आवास बाग-बग़ीचे अलग थे । ये वर्णन इन्द्रियातीत हैं। 
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भगवान की सुधर्मा सभा ही ४ कोस लंबी, ४ कोस चौडी थी जो संसार की सबसे बड़ी सभागृह में शामिल होगी... चारों ओर से १००० खंभों पर टिकी थी... बीच में एक भी खंभा नहीं। उसमें सभी लोग आसीन होने के बाद भी एक आसन हमेशा रिक्त रहता था। मतलब उसका आकुंचर/प्रसरण आवश्यकता के अनुसार होता था। और भी कई विशेषतायें थी उस सभा की। उसमें भूख, प्यास, सर्दी-गर्मी नहीं व्यापती थी।
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भगवान की पटरानी रुक्मिणीजी के रूपप में स्वयम् महालक्ष्मीजी आयी थी। पार्वतीजी जाम्बवंती के रूप में, भगवान यज्ञपुरुष की पत्नि दक्षिणादेवी लक्ष्मणा के रूप में, विरजा कालिन्दी(यमुनाजी) के रूप में, भगवती लज्जादेवी भद्रा के रूप में, गंगाजी मित्रविन्दा के रूप में, पृथ्वीदेवी सत्यभामा के रूपमें आयेंगी और १६१०० राजकन्यायें जिनका वरण भगवान ने भौमासुर का वध करके किया साक्षात महालक्ष्मी की स्वरूपा थीं।
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भगवान की लीला अचिन्त्य है। जिस यमुनापुलिन पर महारास हुआ था वह यमुनापुलिन चिन्मय होने से अनंत कोटी गोपियों के महारास की भूमि बन सका।

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