#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*मध्य का अँग १६*
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दादू हिन्दू लागे देहुरे, मुसलमान मसीति ।
हम लागे एक अलेख सौं, सदा निरँतर प्रीति ॥४३॥
हिन्दू मंदिरों की और मुसलमान मस्जिदों
की उपासना में लगे हैं, किन्तु हम तो सदा प्रतिक्षण प्रीतिपूर्वक मन - इन्द्रियों के अविषय
सर्वत्र व्यापक एक परब्रह्म के चिन्तन में लगे हैं ।
न तहां हिन्दू देहुरा, न तहां तुरक मसीति ।
दादू आपै आप है, नहीं तहां रह रीति ॥४४॥
सँतों की निष्पक्ष मध्य - मार्ग की
साधना में न हिन्दुओं के मंदिर तथा न मुसलमानों की मस्जिद जैसे पूजा - स्थल होते
हैं और न उनके जैसे आरती - नमाज आदि करने के आचरण व रीति - रिवाज होते हैं ।
सन्तों का उपास्य देव तो उनके घट में स्थित स्वयँ आत्मरूप परमात्मा ही है ।
दोनों हाथी ह्वै रहे, मिल रस पिया न जाइ ।
दादू आपा मेट कर, दोनों रहें समाइ ॥४५॥
धर्म के पक्ष से बंधकर हिन्दू - मुसलमान
मदोन्मत्त दो हाथियों के समान हो रहे हैं । जैसे वे एक साथ जल नहीं पी सकते, वैसे ही हिन्दू मुसलमान
मिलकर भक्ति - रस पान नहीं कर सकते । यदि ये धर्म - पक्ष रूप अहँकार को हटाकर
भक्ति करें तो दोनों ही परमात्मा में समा कर रहेंगे ।
(क्रमशः)
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