#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*मध्य का अँग १६*
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दादू जब तैं हम निर्पख भये, सबै रिसाने लोक ।
सद्गुरु के परसाद से,
मेरे हर्ष न शोक ॥४९॥
जब से हम निष्पक्ष हुये हैं, तब से हम पर सभी लोग रुष्ट हैं, किन्तु सद्गुरु कृपा से हमारे हृदय में उनकी प्रसन्नता से न हर्ष था और न
उनके रुष्ट होने से कोई शोक है ।
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निर्पख ह्वै कर पख गहै,
नरक पड़ेगा सोइ ।
हम निर्पख लागे नाम सौं,
कर्ता करे सो होइ ॥५०॥
निष्पक्ष होकर यदि कोई पक्ष ग्रहण करेगा तो वह दु:ख रूप
नरक में ही पड़ेगा । हम तो निष्पक्ष होकर निरंजन राम के नाम - स्मरण में लगे हैं ।
आगे जो परमेश्वर करेंगे, वही
होगा ।
हरि भरोस
दादू पख काहू के ना मिलैं, निष्कामी निर्पख साध ।
एक भरोसे राम के, खेलैं खेल अगाध ॥५१॥
निष्पक्ष मध्य - मार्ग के सँतों का हरि
विश्वास दिखा रहे हैं - निष्पक्ष निष्कामी सँत किसी मतादि के पक्ष में न मिलकर
निरंजन राम के भरोसे भक्ति रूप खेल खेलते हुये अगाध आनन्द लेते हैं ।
(क्रमशः)
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