सोमवार, 8 जनवरी 2018

= सुमिरण का अंग २०(४९-५२) =

卐 सत्यराम सा 卐
*प्राण कवल मुख राम कहि, मन पवना मुख राम ।*
*दादू सुरति मुख राम कहि, ब्रह्म शून्य निज ठाम ॥*
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**श्री रज्जबवाणी** 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi 
*सुमिरण का अंग २०*
सकल सुखी हरि सुमिरतों, मनसा वाचा मान । 
जन रज्जब रुचि सौं रटी, यह जीव जीवन जान ॥४९॥ 
हम मन वचन से यह कहते हैं, तु सत्य मानों, हरि-स्मरण करने से सभी सुखी होते हैं । रे जीव ! हरि-स्मरण को अपना जीवन रूप जानकर प्रेमपूर्वक हरि का नाम रटा कर । 
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रज्जब अज्जब काम है, राम नाम रुचि सेव ।
आठौं पहर अखंड रट, मानुष से व्है देव ॥५०॥ 
प्रेमपूर्वक राम नाम रटते हुये भक्ति करना अद्भुत कार्य है, अत: राम नाम को अखंड अष्ट पहर रटना चाहिये । ऐसा करने से प्राणी मनुष्य से देव अर्थात ब्रह्म बन जाता है । 
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सांई सुमिरन सत्य है, सदगति सुमिरन हार । 
जन रज्जब युग युग सुखी, वक्ता श्रोता पार ॥५१॥
ईश्वर-स्मरण मुक्ति का सच्चा साधन है, जो स्मरण करता है, वह मुक्ति को प्राप्त होता है और ब्रह्म रूप होकर प्रति युग में सुखी रहता है, नाम के वक्ता और श्रोता भी संसार से पार हो जाते हैं । 
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सुरति१ माँहिं सांई सुमिरि, नाम निरति२ मधि राखि । 
जन रज्जब जग उद्धरै, सद्गुरु साधू साखि३ ॥५२॥ 
मनोवृत्ति१ में निरंतर ईश्वर का स्मरण रख और विचारों२ में भी नाम को मुख्यता से रख, ऐसा करने से प्राणी संसार से पार हो जाता है, इसमें सद्गुरु और संतों की साक्षी३ है । 
(क्रमशः)

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