रविवार, 28 जनवरी 2018

= ८३ =


🌷🙏#daduji🙏🌷
🌷🙏卐 सत्यराम सा 卐🙏🌷
*दादू सोई सही साबित हुआ, जा मस्तक कर देइ ।*
*गरीब निवाजे देखतां, हरि अपना कर लेइ ॥* 
=============================
साभार ~ Madhusudan Murari

ज्ञानी का सबसे बड़ा खतरा है -अहंकार
भक्त का सबसे बड़ा खतरा है -आलस्य
.
ज्ञानी की अस्मिता बढ़ती चली जाती है। जितना करता है उतनी अस्मिता बढ़ जाती है। उतना ढेर लगा लिया उसने कृत्यों का। अब वो कहता है। अब तो समाधि होनी चाहिए। अब और क्या कमी रह गयी।
भक्त कहता है मेरी कोई सामर्थ्य नही। असहाय हूं, अगर तुम मिलोगे तो मेरे किसी प्रयास से नहीं, तुम्हारे प्रसाद से। अगर मिलोगे तो इसलिए कि तुम महाकरुणा वान हो। इसलिए कि करुणा तुमसे बह रही है। तो भक्त की सारी कला इतनी है कि वह करुणा को पुकारने में समर्थ हो जाए। वह करुणा को उसकाने में समर्थ हो जाए। 
.
जैसे छोटा बच्चा झूले में पड़ा है। उठ भी नहीं सकता, बोल भी नहीं सकता, चल भी नहीं सकता, कुछ भी नहीं कर सकता रो तो सकता है। उसके रोने से ही माँ दौड़ी चली आती है। उसे भरोसा सिर्फ एक बात का है कि अगर मैं रोऊ, अगर मेरा रोना सच में वास्तविक हो, अगर मेरे रोने में मेरा हृदय हो तो कितनी ही दूर हो मां, कही भी हो, वह भागी चली आएगी। उसकी करुणा पर भरोसा है, उसके प्रेम पर भरोसा है।
.
भक्त की प्रक्रिया परमात्मा की अनुकंपा पर निर्भर है। और परमात्मा अनुकंपा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। अनुकंपा और अनुकंपा का का ही नाम परमात्मा है। परमात्मा कोई व्यक्ति नहीं है इस अस्तित्व की सारी अनुकंपा का ही इकट्ठा नाम परमात्मा है। अस्तित्व करुणा वान है, क्योकि हम इससे पैदा हुए हैं। हम इसके हैं, यह हमारा है। यह अस्तित्व करुणावान है, क्योकि अस्तित्व हमारा श्रोत है। 
.
श्रोत हमारे प्रति उदास नहीं हो सकता। जिस जमीन से ये वृक्ष पैदा हुए हैं, वह जमीन उस वृक्ष के प्रति उदास नहीं हो सकती। उपेक्षापूर्ण नहीं हो सकती, उस जमीन से रसधार आती रहेगी। रस आकर वृक्ष में फूल बनता ही रहेगा। इस बात का तुम्हे स्मरण आ जाए कि जिससे हम पैदा हुए है। यह मूल स्रोत हमारे प्रति उपेक्षा से भरा हुआ नहीं हो सकता। बस पुकारने की बात है । जिसने ठीक से पुकारा, जिसने हृदयपूर्वक पुकारा उस पर उस परमात्मा की अनुकंपा निश्चित बरस जाती है॥
**[जयश्रीराम]**

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें