मंगलवार, 9 जनवरी 2018

= सहजानन्द(ग्रन्थ २७-२३/२४) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= सहजानन्द(ग्रन्थ २७) =*
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*सोझा पीपा१ सहज समाना ।* 
*सेन२ धना३ सहजैं रस पाना ॥* 
*जन रैदास४ सहज कौं बन्दा ।* 
*गुरु दादू सहजैं आनन्दा ॥२३॥* 
(१. पीपा= भगवद्भक्त क्षत्रिय थे ।)    (२. सेन=सेनभक्त प्रसिद्ध जाति के नाई थे ।)   (३. धना = भगवद्भक्त जाति के जाट थे ।)   (४. रैदास= प्रसिद्ध भक्त चमार थे ।) 
भगवद्भक्त पीपा सेनभक्त(नाई) तथा धना जाट ने भी सहज साधना से ही भगवद्रस का पान किया था । सन्त रैदास भी सहज साधना से ही राम की उपासना करते थे । गुरु दादूदयाल भी सहज समाधि में ही परमसुख का आनन्द लेते थे ॥२॥ 
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*=  दोहा =*
*एकै सहज सुभाव गहि, संतनि कियौं बिलास ।* 
*मनसा बाचा कर्मना, तिहिं पथि सुन्दरदास ॥२४॥* 
॥ समाप्तोSयं सहजानन्द ग्रन्थः ॥२६॥ 
कहने का तात्पर्य यह है कि सभी सन्तों ने सहज साधना के द्वारा भगवच्चरणों का ध्यान करते हुए परमतत्व का साक्षात्कार किया है । महात्मा सुन्दरदासजी भी मन, वचन, कर्म से गुरु के बताये इसी पथ(सहज साधना) के पथिक हैं । वे भी सहज साधना से ही भगवच्चरणों में लीन रहते है) ॥ 
*सहजानन्द नामक ग्रन्थ समाप्त*
(क्रमशः)

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