मंगलवार, 9 जनवरी 2018

= सुमिरण का अंग २०(५३-५६) =

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐
*दादू सब सुख स्वर्ग पयाल के, तोल तराजू बाहि ।*
*हरि सुख एक पलक का, ता सम कह्या न जाहि ॥*
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**श्री रज्जबवाणी** 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi 
*सुमिरण का अंग २०*
रज्जब अज्जब यह मता, निशि दिन नाम न भूल । 
मनसा वाचा कर्मना, सुमिरण सब सुख मूल ॥५३॥ 
यह स्मरण करने का सिद्धान्त अदभुत है, नाम रात्रि-दिन में कभी भी न भूलना चाहिये । हम मन, वचन, कर्म से कहते हैं कि - हरि स्मरण संपूर्ण सुखों का मूल हेतु है । 
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सुमिरण सम संपद् नहीं, धन नहिं ध्यान समान । 
चित यह बारंबार ले, रज्जब रिधि रट जान ॥५४॥ 
हरि-स्मरण के समान कोई भी संपत्ति नहीं है, ध्यान के समान कोई धन नहीं है, हरि-नाम रटने का ही ऋद्धि जानो और यह स्मरण-धन बारंबार प्राप्त करना चाहिये, अर्थात निरंतर स्मरण करते रहना चाहिये । 
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निमिष मुहूरत नाम ले, तिल१ पल सुमिरन होय । 
जन रज्जब या२ उमर३ में, साफिल बरियाँ४ सोय ॥५५॥ 
जिस मुहूर्त्त(दो घड़ी) निमेष, पल और और पल के अल्प१ भाग में हरि-स्मरण होता है, इस२ मानव तन की आयु३ में वही सफल४ है । 
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सोई बेला१ सो घड़ी, सो क्षण मात्र सु२ सत्य । 
रज्जब रहिये राम में, और अकारथ३ जत्य४ ॥५६॥ 
जिस में वृत्ति राम में रहती है, वह घड़ी१, वह क्षण मात्र भी सुन्दर२ सत्य है अन्य सब यत्न४ तो व्यर्थ३ है ।
(क्रमशः)

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