#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*मन ही सौं मन सेविये, ज्यौं जल जलहि समाइ ।*
*आत्म चेतन प्रेम रस, दादू रहु ल्यौ लाइ ॥*
*छाड़ै सुरति शरीर को, तेज पुंज में आइ ।*
*दादू ऐसे मिल रहै, ज्यों जल जलहि समाइ ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
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*अजपा जाप का अंग २२*
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रज्जब सहस नाम पंखो, सु परि, आतम जय आकाश ।
एक प्राण पारा मई, उडहि नाम पर नाश ॥५॥
परमात्मा के सहस्त्र नाम रूप पंखों की सकाम चिन्तन रूप उडान द्वारा जीवात्मा ब्रह्म रूप आकाश की ओर जाता है, किन्तु कामना प्राप्ति के लिये पुन: संसार में ही आ जाता है, परन्तु पारा उड़ता है और उड़ने के स्थान पर पुन: नहीं आता, ऐसे ही कोई एक नाम - पंखों से निष्काम चिन्तन रूप उड़ान लगाता है और वह अपना अभाव कर देता है अर्थात ब्रह्म से मिल जाता है ।
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नर नग गुटिका सिद्ध तन, पंखों बिना उङंत ।
तैसे रज्जब नाम बिन, नेह माग तहँ जंत ॥६॥
जैसे नर गुटिका(पारादि से बनी गोली मुख में रखकर उस) के बल से हीरा - हीरी के वियोग से हीरी के पास जाने के लिये, और सिद्ध शरीर, ये पंखों के बिना ही आकाश में उड़ जाते हैं, वैसे ही नाम-पंख बिना भी जीव स्नेह मार्ग द्वारा उड़कर परब्रह्म के पास पहुच जाता है ।
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रज्जब हित पर हद हुई, निरख्या नेह निराट१ ।
पय पाया पाषाण मुख, करी सु ऊबट२ बाट ॥७॥
स्नेह की महिमा ऐसी है कि - परमात्मा रूप सीमा तक पहुँचा देता है, स्नेह से भक्तों ने परमात्मा को पूर्ण१ रूप से देखा है, प्रेम के द्वारा ही नामदेव ने पाषाण मूर्ति को दूध पिलाया है, स्नेह अगम२ में भी मार्ग बना देता है ।
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नाम सूई पट प्राण पति, सुरति सनेही ताग ।
रज्जब रज तज काढ़तों, कौन वस्तु बिच लाग ॥८॥
नाम तो सुई है, प्राण पति परमात्मा वस्त्र है, स्नेह से युक्त सुरति तागा है, वृत्ति रूप तागा साफ करके नाम सुई द्वारा ब्रह्म - वस्त्र से निकालने में किस वस्तु की आवश्यकता पड़ती है ? किसी की भी नहीं । भाव यह है, स्नेह युक्त वृत्ति निरन्तर नाम चिन्तन रूप अजपा जाप द्वारा ब्रह्म को प्राप्त करती है ।
(क्रमशः)
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