शनिवार, 3 फ़रवरी 2018

= हरिबोल चितावनी(ग्रन्थ २९-२५/२६) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*हरिबोल चितावनी(ग्रन्थ २९)*
*बांकि३ बुराई छाडि सब,*
*गांठि हृदै की खोल ।*
*बेगि४ बिलँब क्यौं बनत५ है,*
*(सु) हरि बोलौ हरि बोल ॥२५॥*
(३. बांके = बांकापन, ऐंठ) (४. बेगि = इसका सम्बन्ध ‘हरिबोलो’ से है-अर्थात् शीघ्र राम भजो) (५. बनत है = ऐसा होता है)
यह झूठी ऐंठ(दर्प) छोड़ दे, ह्रदय की घुण्डियाँ(कुटिलता) खोल दे । जल्दी कर ! देर क्यों कर रहा है ! निरन्तर हरिस्मरण कर ॥२५॥
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*घटी बढी सब देखिलै,*
*मन अपने कौ तोल ।*
*काहे कौं कलप्यौ ६ मरै,*
*(सु) हरि बोलौ हरि बोल ॥२६॥*
(६. कलप्यौ मरै = संसार की चिन्ता ओर विचार मनमें रख कर मत मरे बरन हरि बोलता मर)
मैंने तुझे संसार के बारे में बहुत कुछ ऊँच-नीच समझा दिया अब तूं अपने बिवेक से काम ले । जब मरना ही है तो नाना प्रकार के संकल्प लेकर क्यों मरता है हरिस्मरण करता हुआ मर ॥२६॥
(क्रमशः)

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