











*चलु दादू तहँ जाइये, जहँ मरै न जीवै कोइ ।*
*आवागमन भय को नहीं, सदा एक रस होइ ॥*
=============================
साभार ~ oshoganga.blogspot.com
'स्व' अकेली संपत्ति है जो छीनी नहीँ जा सकती और ये ही अकेला जानना है जो मनुष्य को अमृत से, अनंत से, अनादि से जोड़ देता है। और इस जानने के बाद ही मनुष्य जीवन में प्रवेश करता है। सब को मृत्यु ने घेरा हुआ है। चारोँ तरफ मृत्यु है। रोज मरते हैँ पक्षी, रोज मरते हैँ वृक्ष, रोज मरते हैँ पशु चारोँ तरफ मृत्यु परिव्याप्त है, जीवन तो कहीँ दिखाई नहीँ देता। एक केन्द्र और है जान लेने को कि स्वयं के भीतर भी तो कहीँ मृत्यु व्याप्त नहीँ? वहीँ पर मृत्यु अभी तक देखी नहीँ गई है। बाहर कुछ भी थिर नहीँ, अमृत नहीँ, शाश्वत नहीँ।
.
अब एक केन्द्र स्वयं के भीतर शेष रह जाता है कि मनुष्य उसे भी और देख ले।
यदि वहां भी मृत्यु है तो जीवन अर्थहीन है, सारी व्यर्थ की कथा है। तब केवल अज्ञानी जी सकते हैँ। भीतर के केन्द्र को जानना अत्यंत आवश्यक है। क्योँकि यदि ये ज्ञात हो जाए कि वहां मृत्यु नहीँ है, तो सारा जीना सार्थक हो जाए। यदि ये जान लिया कि भीतर के केन्द्र पर मृत्यु नहीँ है तो मृत्यु दिखाई देती है, अमृत पीछे खड़ा है। इस अमृत के बोध को अनुभव कर लेना ही धर्म है। और उस अमृत का अनुभव हो जाए तो आत्मा भी है, परमात्मा भी है। फिर सब है। उस केन्द्र को जानना है जो मै हूं, जो भीतर है उससे परिचित होना है।
.
कैसे मनुष्य उससे परिचित हो?
जो बाहर है, उससे तो मनुष्य परिचित हो जाता है। सब दिखाई पड़ रहा है....। एक स्वयं का होना ही दिखाई नहीँ देता। और ये उचित भी है। दूसरे को देखा जा सकता है, स्वयं को देखा भी कैसे जा सकेगा? जो देखा जा सके, वह तो देखने से ही दूसरा हो जाएगा। सब दिखाई देना दूसरोँ का हो सकता है, स्वयं का दिखना कैसे होगा? स्वयं का दिखना नहीं हो सकता है। आत्म-दर्शन हो नहीँ सकता। सब दर्शन पर-दर्शन है।
.
तो फिर आत्म-दर्शन का क्या अर्थ है?
जब भी मनुष्य कुछ कर रहा है तो स्वयं से बाहर होगा, दूसरे से संबंधित होगा। जब कुछ न कर रहा होगा, तब स्वयं के भीतर होगा, स्वयं से संबंधित होगा। ऐसा क्षण जब मनुष्य कुछ नहीँ कर रहा, कुछ सोच नहीँ रहा, कुछ विचार नहीँ कर रहा, उस क्षण मनुष्य उस प्रामाणिक सत्ता से संबंधित होगा जिसे भारतीय मनीषा आत्मा कहती है। तब पहली बार मनुष्य को ये अनुभव होगा कि मृत्यु नहीँ है। इस स्थिति का नाम, जब मनुष्य कुछ कर नहीँ रहा और केवल **है**....।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें