卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*विचार का अँग १८*
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दादू इक निर्गुण इक गुणमयी, सब घट ये द्वै ज्ञान ।
काया का माया मिले, आतम ब्रह्म समान ॥१३॥
सभी शरीरों में एक निर्गुण रूप और दूसरा सगुणरूप ये दो ज्ञान रहते हैं । जिसमें माया कृत शरीरादि का सगुण ज्ञान ही प्रधान होता है वह माया मय सँसार में मिल कर जन्मता - मरता रहता है और जिस में निर्गुण आत्मा का निर्गुण ज्ञान प्रधान होता है, वह ब्रह्म समान ही होता है ।
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दादू कोटि अचारिन एक विचारी, तऊ न सरबरि१ होइ ।
आचारी सब जग भरा, विचारी विरला कोइ ॥१४॥
बाह्य स्नानादि आचारवान् कोटि व्यक्ति भी एक ब्रह्म विचारवान् के समान१ नहीं हो सकते । आचारवान् व्यक्तियों से तो सर्व जगत् भरा है । विचारवान् ब्रह्म - ज्ञानी तो कोई विरला ही मिलता है ।
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दादू घट में सुख आनन्द है,तब सब ठाहर होइ ।
घट में सुख आनन्द बिन, सुखी न देख्या कोइ ॥१५॥
विचार द्वारा जिसके अन्त:करण में ब्रह्मानन्द प्राप्त है, तो उसे सभी स्थानों में आनन्द प्राप्त होता है और जिसके अन्त:करण में वस्तु - जन्य सुख तथा ब्रह्मानन्द दोनों ही नहीं हैं, ऐसा व्यक्ति कोई भी सुखी नहीं देखा गया ।
(क्रमशः)
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