शनिवार, 3 फ़रवरी 2018

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*दादू मार्ग महर का, सुखी सहज सौं जाइ ।*
*भवसागर तैं काढ कर, अपणे लिये बुलाइ ॥* 
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साभार ~ स्वामी सौमित्राचार्य

“प्रपत्ति” ~ ‘नमामि भक्तमाल को’
**भगवद्भक्त नारियाँ ~ श्री गंगा-जमुना बाई**
बात सोलहवीं शताब्दी की है. एक मुग़ल सरदार ने कामवन पर आक्रमण कर भीषण नरसंहार किया जिसमें दो लड़कियाँ जिनकी अवस्था लगभग ९ वर्ष की थी, अपने परिवार से अगल हो गयीं और एक वन में जाकर छुप गयीं. उस वन से मनोहरदास नामक कोई ब्राह्मण गुजरा. उसे इन दोनों कन्याओं पर दया आ गयी और वो इन्हें मथुरा ले आया. उसने इन्हें नृत्य-संगीत की शिक्षा दी और इन्हें जगह-जगह नचा कर पैसे कमाने लगा. गंगा और जमुना दोनों बहुत सुन्दर थीं. अधिक पैसे कमाने के लिये मनोहरदास ने एक राजा के यहाँ इनका सौदा कर दिया. पाप और पुण्यों का फल समय आने पर मिलता है पर अति उग्र पाप का फल तुरंत मिलता है. कन्या-विक्रय के पाप से मनोहरदास दूसरे दिन ही मर गया पर मरते समय वह अपना सारा गुप्त धन इन कन्याओं को बता गया.
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मनोहरदास के मरने पर इन दोनों कन्याओं ने वृन्दावन के एक वृद्ध संत श्री परमानन्ददासजी के यहाँ आश्रय पाया. बाबा परमानंददास जी इन दोनों कन्याओं को पुत्रीवत स्नेह करते थे. संत के सानिध्य में आकर इन्होंने नाच-गाना छोड़ दिया और भजन में लग गयीं. धीरे-धीरे इनका मन संसार के विषयों से उपरत हो गया. इन्होंने बाबा से वैष्णवी-दीक्षा देने की प्रार्थना करी. इनकी सच्ची निष्ठा देखकर बाबा इन्हें अपने गुरुदेव गोस्वामी श्री हितहरिवंशचन्द्र जी के पास ले गए और उनके शरणापन्न करा दिया. अब तो इनकी ठाकुर जी की सेवा, नाम-जप, भजन आदि में बहुत रूचि बढ़ गयी. इन्होंने अपना सारा धन भी संत सेवा में लगा दिया.
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मथुरा के हाकिम अज़ीज़बेग की इन दोनों पर बुरी नज़र थी. उसने एक दिन चुपके से इनकी कुटिया के आस-पास घेरा डलवा दिया और रात को इनकी कुटिया की ओर चला. कुटिया के बाहर उसने एक सिंह को खड़ा पाया. सिंह ने उस पर आक्रमण कर दिया. बड़ी मुश्किल से वो जान बचाकर भागा. उसे डर के कारण ज्वर आ गया और बार-बार सिंह को यादकर उसे मूर्छा आ जाती थी. गंगा-जमुना को तो इस बात की खबर तक नहीं थी. ये दोनों तो भजन में ही लीन थीं. दूसरे दिन अज़ीज़बेग इनके चरणों में आकर गिरा तथा ‘माता’ शब्द से संबोधित करते हुए इनको सारी बात बताई और क्षमा मांगी.
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भक्ति और भजन का ये प्रभाव होता है कि विपत्ति आती है और प्रभु के द्वारा उसका समाधान भी कर दिया जाता है पर भक्त को पता ही नहीं चलता है. जब कोई भक्त प्रभु के अलावा कुछ जानना ही नहीं चाहता है तभी यह अवस्था आती है. तब प्रभु भी उसको कुछ पता ही नहीं लगने देते हैं. भक्त पूरी तरह से अपने भगवान के ध्यान में होता है और भगवान पूरी तरह से भक्त का ध्यान रख रहे होते हैं.
“स्वामी सौमित्राचार्य”

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