🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*हरिबोल चितावनी(ग्रन्थ २९)*
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*जारि बारि भस्मी करी,*
*ऊपरी दिये टोल१ ।*
*प्रेतप्रेत करि उठि चले,*
*(सु) हरि बौल हरि बोल ॥२३॥*
{१. टोल = पत्थर(चबूतरा वा छतरी बनाने को)}
(जिस शरीर पर तूँ गर्व कर रहा है इसको एक दिन लोग) जलाकर राख की ढेरी बना देंगे और उस पर दस बीस पत्थर रखकर चबूतरा बना देंगे फिर भूत-प्रेत कहकर पास आना भी छोड़ बैठेंगे अतः(तूँ इस भुलावे में न आ और) निरन्तर हरिस्मरण कर ॥२३॥
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*ऐसी गति संसार की,*
*अजहूं राखत जोल२ ।*
*आपु मुये जानि है,*
*(सु) हरि बोलौ हरि बोल ॥२४॥*
(२. जोल = जोर, शक्ति का घमण्ड । इतने मरों को देख कर भी अपना मरा भूल जाते हैं, क्या मरने को खुद ही मर कर जानेंगे ?)
जैसा हम ऊपर कह आये, इस संसार की यही रीति है(या इस शरीर की यही गति है) । तूं अब भी उसकी शक्ति का घमण्ड कर रहा है । क्या इतने मरे हुए को देखकर भी मृत्यु का आभास नहीं होता ! क्या अपने मरने पर ही तूं मृत्यु की भीषणता समझेगा । अरे मुर्ख चेत जा ! निरन्तर हरिस्मरण में मन लगा ॥२४॥
(क्रमशः)
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