#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*जीवित मृतक का अँग २३*
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मैं ही मेरे पोट शिर, मरिये ताके भार ।
दादू गुरु परसाद सौं, शिर तैं धरी उतार ॥१६॥
"मैं" रूप अहँकार की विशाल गठरी जीव के अन्त:करण रूप शिर पर रक्खी है, उसके भार से जीव बारँबार व्यथित होता है । जिन साधकों ने सद्गुरु के ज्ञानोपदेश - प्रसाद से उसे उतार कर दूर धर दी है, वे सुखी हैं ।
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मेरे आगे मैं खड़ा, ता तैं रह्या लुकाइ१ ।
दादू परकट पीव है, जे यहु आपा२ जाइ ॥१७॥
मुझ आत्मा के आगे "मैं सुखी - दुखी" आदि अहँकार खड़ा है । इसीलिये इसकी आड़ में परब्रह्म छिप१ रहा है । यदि अहँकार२ नष्ट हो जाय तो परब्रह्म प्रत्यक्ष ही भासेगा ।
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*सूक्ष्म - मार्ग*
दादू जीवित मृतक होइ कर, मारग माँहीं आव ।
पहली शीश उतार कर, पीछे धरिये पांव ॥१८॥
१८ - २१ में शिष्य बड़े सुन्दरदासजी को निर्गुण भक्ति रूप सूक्ष्म मार्ग में गति का उपदेश कर रहे हैं, प्रथम सब प्रकार के साँसारिक अहँकार को अन्त:करण रूप शिर से उतार के जीवितावस्था में ही मृतक के समान राग - द्वेषादि से रहित सम होकर पीछे ही निर्गुण भक्ति रूप सूक्ष्म मार्ग में पैर रख कर आगे बढ़ो ।
(क्रमशः)
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