#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविध्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविध्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= ५. राग विहागड़ौ =*
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(५)
(तिताला)
*जौ तूं चतुर प्रबीन जांन अति अबकै करि निर्बाहा ।*
*छाडि कलपना राम नाम भजि यातैं और न लाहा ॥३॥*
यदि तुम बहुत समझदार हो तो मेरा यह विनय स्वीकार कर इस बार इसकी रक्षा कर लो । तथा अन्य सांसारिक ऊहापोह छोड़कर केवल राम नाम का भजन करो । इससे अधिक अन्य कोई लाभ तुझे होने वाला नहीं है ॥३॥
*चंचल चपल चाहि माया की यह गुलांम-गति काहा ।*
*सुन्दर सँमुझि बिचार आपुकौं तू तौ है पतिसाहा ॥४॥*
तुम माया की पराधीनवृत्ति(गुलाम गति) क्यों स्वीकार कर रहे हो । तुम अपने विषय में स्वयं विचार करो; क्योंकि तुम अतिशय चतुर विचारक माने जाते हो । अर्थात् विचारकों में बादशाह हो ॥४॥
(क्रमशः)
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