गुरुवार, 9 अगस्त 2018

(१७)

卐 सत्यराम सा 卐
*खोज परे गति जाइ न जानी,*
*अगह गहन कैसे आवे ।*
*दादू अविगत देहु दया कर,*
*भाग बड़े सो पावे ॥*
(श्री दादूवाणी ~ पद. २९७)
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*राघवयादवीयम्* ~ लेखक *श्री वेंकटाध्वरी*
साभार सौजन्य ~ मुदित मिश्र विपश्यी(हिंदी/अंग्रेजी अनुवाद)
अंग्रेजी अनुवाद ~ डा. सरोजा रामानुजम, M.A., Ph.d, Siromani in Sanskrit 
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(१७)
*श्री रामलीला*(अनुलोम)
सागमाकरपाताहाकंकेनावनतोहिसः ।
न समानर्दमारामालंकाराजस्वसा रतम् ॥१७॥
वेदों में निपुण, सन्तों के रक्षक(राम) का गरुड़(जटायु) ने झुक कर नमन किया जिनके प्रति अपूर्ण कामयाचना चुड़ैल, लंकेश की बहन(शूर्पनखा), को भी थी ॥१७॥
Rama the protector of the rishis well versed in vedas, was served by Jatayu and desired by witch Surpanakha, the sister of Ravana.(17)
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(१७) 
*श्री कृष्णलीला*(विलोम)
तं रसास्वजराकालंमारामार्दनमासन ।
सहितोनवनाकेकं हातापारकमागसा ॥१७॥
वे(कृष्ण) – वृद्धावस्था व मृत्यु से परे – पारिजात वृक्ष के उन्मूलन की इच्छा से गए, तब इंद्र – स्वर्ग में रहते हुए भी कृष्ण के हितैषी – को अपार दुःख प्राप्त हुआ ॥१७॥
Indra, being in Swarga so long, though a friend to Krishna, grieved over Krishna's uprooting the Parijatha tree, and not knowing that Krishna, though on earth, is free from death and old age, (being the Lord Himself) went to fight with him.(17)
(क्रमशः)

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