#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*पिंड परोहन सिन्धु जल, भव सागर संसार ।*
*राम बिना सूझै नहीं, दादू खेवनहार ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
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*विनती का अंग ४५*
इस अंग में भगवान् से विनय कर रहे हैं ~
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सकल पतित पावन किये, अधम उद्धारनहार ।
विरुद१ विचारों बापजी, जन रज्जब की बार ॥१॥
हे बापजी ! आपने सभी पतितों को पवित्र किया है, अधमों का भी उद्धार करने वाले हैं, मेरे उद्धार के समय भी आप आपने उक्त यश१ का ही विचार करो, तभी मेरा उद्धार हो सकेगा ।
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रज्जब ऊपर रहम१ कर, हरिजी दीजे हाथ ।
नाता२ राखों नाम का, नरक निवारण नाथ ॥२॥
नरक-क्लेश को नष्ट करने वाले नाथ हरिजी ! दया१ करके मेरे शिर पर अपना कर-कमल दो और अपने नाम का जो भी आपसे सम्बन्ध२ है उसे स्थिर रखो अर्थात नाम स्मरण करने वालों को आप अपनाते आये हैं वैसे ही मुझे अपनाइये ।
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लाखों मांहिं सो लखै, जाका लीजे नाम ।
तो रज्जब मुख्य नाम है, देखो ने बलि जांउ ॥३॥
देखो न लाखों की संख्या में स्थित जिसका भी नाम लेंगे, वह नाम लेने वाले की ओर देखता है, अत: सिद्ध होता है कि नाम साधना मुख्य है । हे प्रभो ! आप मेरी ओर देखते क्यों नहीं, मैं आपकी बलिहारी जाता हूं ।
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रज्जब टेरै रैन दिन, क्यों बोलैं नहिं कंत१ ।
कै२ तुम अब मौनी भये, कै३ तुम चाहो अत ॥४॥
हे स्वामी१ ! मैं रात दिन पुकार रहा हूँ फिर भी आप क्यों नहीं बोलते, क्या२ आप अब मौनी हो गये हैं अथवा३ आप मेरा अन्त चाहते हैं ।
(क्रमशः)
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