गुरुवार, 9 अगस्त 2018

= काल का अँग(२५ - १०/१२) =

#daduji


卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*काल का अँग २५*
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दादू हम तो मूये माँहिं हैं, जीवन का रु१ भरँम ।
झूठे का क्या गर्वबा, पाया मुझे मरँम ॥१०॥
हम तो अहँकार नष्ट हो जाने से मुर्दों की गणना में ही हैं हमारे जीने का तो१ तुम्हें भ्रम हो रहा है और१ जो हमारे अहँकार को जीवित समझते हैं, उन्हें भी भ्रम ही है । हमने तो आत्मानात्मा का रहस्य जान लिया है । अत: हम मिथ्या शरीर का क्या अभिमान करेंगे ?
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यहु वन हरिया देखकर, फूल्यो फिरे गंवार । 
दादू यहु मन मृगला, काल अहेड़ी लार ॥११॥ 
यह मूर्ख मन रूप मृग इस सँसार वन के विषय - वृक्षों की अनुकूलता - हरियाली को देखकर हर्ष से फूला फिरता है, किन्तु अपने पीछे लगे हुये काल - शिकारी को नहीं देखता, यह इसका प्रमाद है । 
सब ही दीसैं काल मुख, आपा गह कर दीन्ह । 
विनशे घट आकार का, दादू जे कुछ कीन्ह ॥१२॥ 
अहँकार को ग्रहण करके प्राणियों ने अपने को काल के मुख में दे रक्खा है । अत: अविवेकी अहँकार - युक्त सभी प्राणी काल के मुख में दिखाई दे रहे हैं । अहँकार युक्त जो कुछ किया गया है, वह और स्थूल - शरीर काल के द्वारा नष्ट होता रहता है ।
(क्रमशः)

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