बुधवार, 26 सितंबर 2018

= पीव पिछाण का अंग ४७(२९/३२) =

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐
*कछू न कीजे कामना, सगुण निर्गुण होहि ।*
*पलट जीव तैं ब्रह्म गति, सब मिलि मानैं मोहि ॥* 
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~  Tapasvi Ram Gopal  
*पीव पिछाण का अंग ४७*
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दीपक होय न घर धणी, बासण ह्वै न कुम्हार । 
शशि सूरज साहिब नहीं, यूं आतम ब्रह्म विचार ॥२९॥ 
दीपक घर का स्वामी नहीं हो सकता, मिट्टी का बर्तन कुम्हार नहीं हो सकता, चन्द्र -सूर्य ईश्वर नहीं हो सकते, वैसे ही सगुण और कार्य होने से अवतार आत्मा ब्रह्म नहीं हो सकते ब्रह्म का स्वरूप निर्गुण निराकार ही है । 
सोना सोनी होय कब, लोहा ह्वै न लुहार । 
चित्र चितरे हिं देख अब, त्यों आतम करतार ॥३०॥ 
सुवर्ण सुनार कब होता है ? लोहा लुहार नहीं हो सकता, देखो अब यह भी प्रसिद्ध है चित्र चित्रकार कब बनता है, वैसे ही सगुण जीवात्मा ब्रह्म नहीं बन सकता, गुणतीत ही ब्रह्म होता है । 
घट घट माँहिं पंच है, पंच पंच में प्राण । 
पै इनको ब्रह्म न बोलिये, गुरु गोविन्द की आण ॥३१॥ 
प्रत्येक शरीर में पंच ज्ञानेन्द्रियें है और उन पंचों के सार रूप प्राण है किन्तु हम गुरु और गौविन्द की शपथ दिलाकर कहते हैं, इनको कभी ब्रह्म नहीं कहना, ये तो मायिक हैं । 
सब अवतार आकार तज, भये निरंजन रूप । 
सो हम सेवें पंडितहु, निर्गुण तत्त्व अनूप ॥३२॥ सभी अवतार अपने आकारों को त्याग कर निरंजन रूप हुये हैं, हे पंडित ! हम उसी अनुपम तत्त्व निर्गुण निरंजन ब्रह्म की उपासना करते हैं ।
(क्रमशः)

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