卐 सत्यराम सा 卐
*पहली प्राण विचार कर, पीछे पग दीजे ।*
*आदि अंत गुण देख कर, दादू कुछ कीजे ॥*
*पहली प्राण विचार कर, पीछे कुछ कहिये ।*
*आदि अंत गुण देखकर, दादू निज गहिये ॥*
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साभार ~ Rp Tripathi
**सार्थक संवाद कैसे करें ?**
**:: ट्रिपल फ़िल्टर टेस्ट ::**
**एक संक्षिप्त शिक्षाप्रद कथानक**
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सम्मानित मित्रों प्राचीन यूनान में एक दार्शनिक हुए सुकरात, जिन्हें उनके जीवन काल में ही महाज्ञानी माना जाता था ..!! यह कथानक उनकी कार्य-प्रणाली का संक्षिप्त वर्णन है ..!!
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एक दिन उनकी जान पहचान का एक व्यक्ति उनसे मिला और बोला :- “क्या आप जानते हैं कि मैंने आपके एक दोस्त के बारे में क्या सुना है ?”
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“एक मिनट रुको”, सुकरात ने कहा, “तुम्हारे कुछ बताने से पहले मैं चाहता हूँ कि तुम एक छोटा सा टेस्ट पास करो. इसे ट्रिपल फिल्टर टेस्ट कहते हैं.”
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“ट्रिपल फ़िल्टर ?”
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“हाँ, सही सुना तुमने.” सुकरात ने बोलना जारी रखा. “इससे पहले कि तुम मेरे दोस्त के बारे कुछ बताओ, अच्छा होगा कि हम कुछ समय लें और जो तुम कहने जा रहे हो उसे फ़िल्टर कर लें. इसीलिए मैं इसे ट्रिपल फ़िल्टर टेस्ट कहता हूँ ..!!”
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१. पहला फ़िल्टर है सत्य ..!!
“क्या तुम पूरी तरह आश्वस्त हो कि जो तुम कहने जा रहे हो वो सत्य है ?”
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“..... नहीं”, व्यक्ति बोला, “दरअसल मैंने ये किसी से सुना है ..”
“ठीक है”, सुकरात ने कहा. “तो तुम विश्वास के साथ नहीं कह सकते कि ये सत्य है या असत्य ..!!”
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याद रखो :- “सिर्फ़ बात मायने नहीं रखती, सच्चाई से युक्त बात मायने रखती है ..!! क्योंकि झूँठे शब्द सिर्फ़ स्वयं में बुरे नहीं होते, वरन वह आत्मा को संक्रमित कर अंदर के बच्चे को मार देते हैं ..!!”
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चलो कोई बात नहीं ; अब दूसरा फ़िल्टर ट्राई करते हैं :-
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२. अच्छाई का फ़िल्टर ..!!
“ये बताओ कि जो बात तुम मेरे दोस्त के बारे में कहने जा रहे हो ; क्या उसमें उसकी कुछ अच्छाई का वर्णन है ?”
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“... नहीं, बल्कि ये तो इसके उलट है ..!!”
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तो सुकरात ने कहा याद रखो :- “मधु-मक्खी से शिक्षा लो, जो नीम जैसे कड़वे पेड़ में भी पराग(मीठापन) ढूँढ, शहद जैसे औषधि-तुल्य द्रव्य का निर्माण कर देती है ..!! साधारण मक्खी से नहीं, जो बुराई संग्रहित करने की आदत के कारण मीठे-फल को भी संक्रमित कर देती है ..!! कोई बात नहीं, तुम अभी भी टेस्ट पास कर सकते हो, क्योंकि अभी भी एक फ़िल्टर बचा हुआ है ..!!”
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३. उपयोगिता का फ़िल्टर ..!!
“मेरे दोस्त के बारे में जो तू बताने वाले हो क्या वह ... मेरे लिए उपयोगी है ?”
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...“हम्म्म….नहीं, कुछ ख़ास नहीं…”
“अच्छा,” सुकरात ने अपनी बात पूरी की, “यदि जो तुम बताने वाले हो वो ना तो सत्य है, ना ही अच्छा, और ना ही उपयोगी, तो उसे सुनने का क्या लाभ?” और ये कहते हुए वो अपने काम में व्यस्त हो गए ...!!
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उपरोक्त से सहमत हैं ना सम्मानित मित्रों ? यदि हाँ ! तो क्यों ना इस संचार-क्रांति के युग में इस कथानक को आधार बना, हम भी सार्थक-संवाद को गति दें ?
सभी मित्रों को नवरात्रि के पावन पर्व की सपरिवार, अनंत शुभ कामनाएँ ..!!
********ॐ कृष्णम वन्दे जगत् गुरुम********
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